फुर्सत वाले शुक्रवार

पड़ोसन के परदे के पीछे: भाग 3


📆 शुक्रवार की दोपहर

आज प्रियंका मायके गई थी। आरव के पास पूरा घर खाली था।
दोपहर की धूप में वो सिर्फ शॉर्ट्स पहनकर बैठा चाय पी रहा था।

तभी दरवाज़े की घंटी बजी।

दरवाज़ा खोला, तो सामने वही — नीलिमा — हल्के नीले रंग की साड़ी में, बिना ब्लाउज़,
और बाल हल्के गीले। चेहरा चमक रहा था… मगर उसकी आँखें उससे भी ज़्यादा।

“शक्कर ख़त्म हो गई थी… सोचा तुमसे माँग लूँ…”, वो बोली।

“और हाँ… अगर अकेले हो तो दो मिनट बैठ जाऊँ?”

आरव का लंड वहीं से हल्का खड़ा होने लगा।


🫖 शक्कर और शरारत

आरव उसे किचन तक ले गया। उसने शक्कर का डब्बा उठाया और नीलिमा की तरफ बढ़ाया।

नीलिमा ने डब्बा लेते हुए हल्के से उसके हाथ को छुआ… और कहा:

“तुम्हारे हाथ बड़े मज़बूत हैं… लगता है अच्छी गाढ़ी चाय भी बना लेते हो… और कुछ और भी?”

आरव मुस्कराया, “जो चाय पसंद आए, वो बना सकता हूँ।”

“और अगर मैं कहूँ, मुझे आज चूसने लायक बर्फी चाहिए…?”

आरव अब खुद को रोक नहीं पाया। उसकी आँखें नीलिमा के उभरे हुए चूचों पर जा चुकी थीं।


🛏️ बेडरूम का नज़ारा

“आओ… अंदर आओ,” आरव ने कहा।

नीलिमा हँसते हुए बेडरूम में गई।
वो खुद पलंग पर बैठी, पल्लू कमर पर सरका और बोली —

“आज कोई रोकने वाला नहीं… तो रुकोगे क्यों?”

आरव झुकते हुए उसकी साड़ी खींचने लगा…
ब्रा नहीं थी — चूचे एकदम नंगे… थोड़े भारी, मगर चुसने लायक।

उसने एक चूचा मुँह में लिया… और जीभ से गोल-गोल घुमाने लगा।

नीलिमा कराह उठी — “ओह्ह्ह… जोर से… चूस बे… दूध निकाल देना आज!”


💋 असली गरमी

नीलिमा अब पूरी खुल चुकी थी।
उसकी साड़ी नीचे तक उतर चुकी थी… और चूत से गीली गर्मी की खुशबू आने लगी थी।

आरव ने उसका पाँव उठाया… और सीधा चूत पर मुँह रख दिया।

“तू तो सच में जानवर है बे… ओह्ह्ह… मेरी बूर चाट… हाँ… वहीं… चाट बे मेरी चूत…”

आरव जीभ से बारी-बारी उसकी चूत के होंठ चाटने लगा।

नीलिमा की साँसें तेज़… हाथ उसके बालों में… और पैर काँपते हुए…

“अबे, अब डाल दे… बहुत हुआ… गाड़ मुझे बे… मेरी बूर चीर डाल!”


🍆 लंड की चढ़ाई

आरव ने अपने शॉर्ट्स उतारे।
लंड खड़ा था… एकदम सीधा, गरम।

नीलिमा ने उसे पकड़ा, हाथ में झुलाया… और कहा:

“तेरा लौड़ा देख के ही मेरी गांड भी भीग गई बे…”

फिर वो पलटी… चारों खाने चित…

आरव ने उसकी गांड की सलवटें अलग कीं… और एक झटके में बूर में लंड घुसेड़ दिया।

“आआहहह… ओह्ह्ह… ऐसे ही… जोर से… ठोक बे… आज मेरी चूत की आग बुझा…”


🫠 चरमराता चारपाई

चारपाई चरमरा रही थी… और आरव की हर रगड़ पर चूत से आवाज़ें आ रही थीं – चप… चप… चप…

नीलिमा अब बेसुध थी… मगर उसका मुँह अब भी बक रहा था:

“तेरे जैसी चाट… तेरे जैसी ठोक… मेरे मर्द ने कभी नहीं दी…

हर शुक्रवार तू ही मेरी बूर गाढ़ेगा बे… तेरी गांड चाट लूँगी मैं…


💦 अंत

आरव ने ज़ोर का आखिरी झटका मारा… और लंड को बाहर खींचते ही उसपर फूट पड़ा।

नीलिमा की पीठ और चूत दोनों गीली हो चुकी थीं।

वो हँसते हुए बोली:

“फुर्सत वाले शुक्रवार अब तेरे नाम… हर हफ्ते मेरी चूत के दरवाज़े तेरे लिए खुले हैं बे…”

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