Short Teaser शाम की धूप उतर रही थी और रीनू के घर की खिड़कियों से हल्की हवा अंदर आ रही थी।तभी दरवाज़ा खटखटाया – और सामने खड़ा था एक अनजान लड़का ,झ िझकता हुआ ,मगर आँखों में कुछ चमकती शरारत।
Character Detail दानीश (26) – छोटा कद ,साँवला रंग ,पर चाल में आत्मविश्वास।उसकी आँखों में वो भरोसा था जो औरतों को असहज भी करता है और आकर्षित भी।रीनू (42) – भरे हुए बदन वाली पंजाबी विधवा।हँसते समय उसके गालों पर हल्की लकीरें पड़तीं ,और हर लकीर के पीछे एक अधूरी रात छिपी लगती थी।काका (60) – अगल – बगल वाला पड़ोसी जो हर शाम रीनू के घर की खिड़की की तरफ़ झाँकना नहीं भूलता।
Plot / Setting अमृतसर का पुराना इलाका ,जहाँ मकान एक – दूसरे से चिपके हुए हैं और हर दीवार के पार की आहट सुनाई देती है।नीचे दुकानें ,ऊपर कमरे।रीनू का घर बड़ा था – बस अकेलापन बड़ा था।इसी में दानीश किराए पर आ गया।
कहानी की शुरुआत उस शाम से हुई जब रीनू ने पहली बार दानीश के लिए दरवाज़ा खोला।सफ़ेद सूती कुर्ते में उसका चेहरा धूप से हल्का तपा हुआ था।" मकान खाली ह ै ?" " ह ाँ बेटा ,ऊपर का कमरा।लेकिन नियम हैं – रात ज़्यादा देर तक बाहर नहीं रहना ,और लड़कियों को लेकर मत आना।" दानीश मुस्कराया , " जी आंटी ,मैं शरीफ़ लड़का हूँ।" रीनू हल्के से हँसी – और शायद पहली बार उसे एहसास हुआ कि उसकी मुस्कान कोई नोटिस कर रहा है।
दिन बीतते गए।दानीश सुबह नौकरी और शाम को जल्दी लौट आता।रीनू उसके लिए कभी चाय रख देत ी ,कभी कहती , " आज देर हो गई ?" धीरे – धीरे घर में एक अनकही रफ़्तार आने लगी।दीवारों के पार दोनों की आवाज़ें एक – दूसरे को ढूँढने लगीं।
एक रात दानीश नीचे रसोई में पानी लेने आया।रीनू वहीं थी ,आँचल से पसीना पोंछते हुए।उसके बाल खुले थे ,और हल्की सी महक फैल रही थी।" आपको डर नहीं लगता ,इतने बड़े घर में अकेले ?" उसने पूछा।रीनू बोली , " डर किससे लगेगा ?अब तो डर की भी आदत हो गई है।" उसकी आवाज़ में एक थकान थी ,पर साथ में कुछ और भी – एक सिहरन सी।
उस पल के बाद उनकी बातें बढ़ने लगीं।कभी बरामदे में ,कभ ी सीढ़ियों पर ,कभी छत पर।दानीश को अब उसके कदमों की आहट तक पहचान आने लगी थी।और रीनू ?वो अब बिना वजह आईने में अपने बाल सँवारती थी।
एक शाम बारिश शुरू हुई।बिजली गई हुई थी।रीनू ने ऊपर से आवाज़ दी , " दानीश ,नीचे आ जाओ ,मोमबत्ती दे दो।" वो नीचे आया ,और उस छोटे से कमरे में अँधेरे और रोशनी का खेल चलने लगा।मोमबत्ती की लौ रीनू के चेहरे पर पड़ रही थी – उसके गालों पर हल्की चमक थी ,होंठ सूखे ,और नज़रें कहीं अटकी हुईं।दानीश ने वो लौ उसके करीब लाते हुए कहा , " अब तो रोशनी भी जलन महसूस कर रही होगी।" रीनू पलभर चुप रही ,फिर बोली , " तुम बहुत बातें करते हो।" " आप सुनती क्यों हो फिर ?" उसने मुस्कराते हुए कहा।
दोनों के बीच हवा भारी हो गई थी।बाहर गरजते बादल और भीतर एक अजीब सी गर्मी।रीनू ने धीरे से मोमबत्ती उसके हाथ से ली ,उँगलियाँ छू गईं।बस इतना ही ,और दोनों की साँसें एक पल को रुक गईं।
रीनू ने पर्दा गिराया तो उसका चेहरा अब भी धड़कनों से भीगा हुआ था।खिड़की के बाहर काका की परछाई धीरे – धीरे धुंध में खो गई ,पर उसके दिल की धड़कनें अब भी उतनी ही तेज़ थीं।उसने मोमबत्ती बुझा दी और दीवार के सहारे खड़ी रही – सांसें थमती नहीं थीं।कमरे की हवा अब अलग लग रही थी ,जैसे उसमें किसी की मौजूदगी बाकी हो।
ऊपर वाले कमरे में दानीश करवटें बदल रहा था।उसकी आंखों में वो एक पल बार – बार घूम रहा था – जब उसकी उंगलियां रीनू के हाथ से छू गई थीं।वो एहसास अजीब था ,न पूरा अपनापन ,न पूरा फासला।कुछ तो था जो दोनों के बीच चुपचाप जाग गया था।
सुबह हुई तो रीनू ने रसोई में चाय चढ़ाई।बाहर बारिश थम चुकी थी ,पर ज़मीन अब भी गीली थी।तभी दानीश नीचे आया ,बाल अब भी गीले ,और होंठों पर वही मुस्कान।" गुड मॉर्निंग आंटी ," उसने कहा ,मगर आवाज़ में अब ' आंटी ' का मतलब वैसा नहीं था जैसा पहले था।रीनू ने कप में चाय डालते हुए पूछा , " कल रात डर तो नहीं लगा ?" " नहीं ," उसने मुस्कराकर कहा , " आपके घर में तो रौशनी भी खूबसूरत लगती है।" रीनू ने उसकी बात सुनी तो मुस्कान रोक न पाई।उसके गालों पर हल्की लालिमा आ गई – उसने कप बढ़ाया ,पर हाथ फिर से छू गया।इस बार दोनों ने हाथ नहीं हटाए।
वो एक पल खामोश रहा – बस चाय की भाप और उनके बीच की दूरी।रीनू ने धीरे से हाथ खींच लिया , " जाओ ,ठंडी हो जाएगी।" दानीश ने कप लिया ,एक घूंट पिया और कहा , " आपके हाथ की गर्मी इससे ज़्यादा थी।" रीनू का चेहरा ठहर गया।उसने बस खिड़की की तरफ़ देखा ,फिर अपने बाल पीछे किए और रसोई से बाहर चली गई।
दिन भर घर में एक अजीब सी बेचैनी रही।रीनू बार – बार वही पल याद कर रही थी।वो नहीं चाहती थी कि ऐसा कुछ महसूस करे – मगर जो हो रहा था ,उस पर उसका बस नहीं था।शाम को जब वो छत पर कपड़े सुखाने गई ,नीचे से दानीश ने आवाज़ दी , " पानी दे दीजिए ,नल काम नहीं कर रहा।" रीनू नीचे आई ,बाल अब खुले हुए थे ,और हल्की हवा में लहराते जा रहे थे।उसने गिलास भरकर दिया।दानीश ने गिलास लिया ,उसकी उंगलियां फिर छू गईं।" आप बार – बार ऐसा करते हैं ?" रीनू ने धीरे से पूछा।" क्या ?" " छूना।" दानीश ने उसकी आंखों में देखा , " नहीं करता …बस आपसे होता है।"
वो जवाब सुनते ही रीनू का चेहरा जैसे जम गया।कुछ कहना चाहा ,पर शब्द गले में अटक गए।उसने गिलास वापस लिया ,और बिना कुछ कहे ऊपर चली गई।
रात को जब हवा फिर से चली ,तो खिड़की से पर्दा हिला।ऊपर के कमरे में रोशनी जल रही थी।रीनू नीचे खड़ी थी ,ऊपर झांक रही थी।दानीश खिड़की के पास खड़ा था ,वही मुस्कान ,वही नज़र।दोनों की आंखें मिलीं – और बिना कुछ बोले ,बहुत कुछ कहा जा चुका था।
उस रात रीनू देर तक नहीं सोई।उसके मन में एक हलचल थी – डर ,चाह ,और अपराधबोध का संगम।वो आईने के सामने खड़ी हुई ,अपने चेहरे को देखा।" ये क्या हो रहा है मुझसे " उसने खुद से कहा।फिर धीमे से परदा बंद कर लिया।
उसी वक्त ऊपर से कदमों की आहट आई।दानीश शायद नीचे आ रहा था।रीनू ने दिल थाम लिया।दरवाज़े के पास जा खड़ी हुई – सांसें धीमी हो गईं।सीढ़ियों पर हल्की चरमराहट ,और फिर – ठक ठक
वो रुक गया।रीनू ने पूछ ा ," कौन ?" " म ैं हूँ नीचे का बल्ब खराब हो गया था ," दानीश की आवाज़ आई।रीनू ने धीरे से दरवाज़ा खोला ,बस थोड़ा सा – दोनों के बीच एक पतली सी रोशनी की लकीर थी।
वो लकीर अब उनके बीच की दूरी माप रही थी।रीनू ने कहा , " रात काफी हो चुकी है सुबह ठीक कर देना।" दानीश ने सिर झुकाया , " ठीक है " पर जाते – जाते कहा , " आप डरिए मत ,मैं पास ही हूँ।"
रीनू ने दरवाज़ा बंद किया – मगर उसके दिल के दरवाज़े अब बंद नहीं हो पा रहे थे।
रीनू ने दरवाज़ा बंद किया था ,मगर भीतर की सिहरन बंद नहीं हुई।हवा में जैसे अब भी उसके कदमों की हल्की आहट थी।कमरे में हल्की नमी थी और परदे के पीछे वही अधूरा स्पर्श ,जो छू कर भी अधूरा रह गया था।उसने सांस खींची – भीतर कुछ धीमे – धीमे सुलग रहा था।
वो पलंग के किनारे बैठी रही।बाहर बारिश की हल्की टपक – टपक ,और भीतर दिल की धकधक।आईने में उसका चेहरा थोड़ा लाल था ,जैसे खुद से कोई राज़ छुपा रही हो।उसने हाथों से चेहरा छुआ ,आँखें झपकीं ,फिर खुद से मुस्कराई – " पागल हूँ मैं।"
उधर दानीश ऊपर अपने कमरे में टहल रहा था।वो हर आवाज़ सुन रहा था – नीचे की खिड़की के पीछे की सरसराहट ,और वो धड़कन जो दीवारों के पार भी महसूस हो रही थी।उसने मोबाइल उठाया ,फिर रखा।खुद से बोला , " बस एक बार देख लूँ "
वो नीचे आया ,बहुत धीरे।सीढ़ियों के हर पायदान पर उसका कदम सोच – समझ कर पड़ रहा था।दरवाज़े के पास आकर वो ठहर गया।अंदर से हल्की रोशनी झाँक रही थी ,और बाहर की हवा में रीनू की महक घुली हुई थी – साबुन ,बारिश और कुछ अजीब सी गर्माहट का मेल।
अंदर रीनू ने कान लगाया – उसे लगा जैसे कोई दरवाज़े के पास है।दिल की धड़कन फिर तेज़ हुई।उसने धीरे से पूछा , " कौन ?" आवाज़ हल्की थी ,पर इतनी कि किसी को रोक दे।" मैं दानीश ," आवाज़ बहुत पास से आई।रीनू ने पलटकर देखा ,जैसे खुद को रोकना चाहती हो ,मगर उसके कदम खुद ही दरवाज़े की ओर बढ़े।
दरवाज़ा थोड़ा खुला ,बस इतना कि उसकी आँखें दिखें।" कुछ काम था ?" उसने धीमे स्वर में पूछा।" नींद नहीं आ रही थी ," उसने कहा।रीनू मुस्कराई , " नींद तो सबको आ जानी चाहिए।" " हर किसी को नहीं आती ," दानीश बोला , " कुछ लोग बस सपनों में खोए रहते हैं।"
एक पल को दोनों खामोश रहे।हवा में गहराई थी।रीनू ने कहा , " अब सो जाओ।" वो पलटने ही लगी थी कि दानीश ने धीमे से कहा , " अगर डर लगे तो बुला लेना।"
उसकी आवाज़ में नर्मी थी ,पर एक खिंचाव भी।रीनू के कदम वहीं ठहर गए।दरवाज़ा बंद हुआ ,पर उस आवाज़ की गूंज उसके सीने में रह गई।
रात बहुत लंबी थी।रीनू लेटी तो नहीं ,बस आँखें मूँद लीं।उसकी साँसों की लय बदल गई थी।मन में बार – बार वही बात गूंज रही थी – " अगर डर लगे तो बुला लेना "
अगली सुबह हवा साफ़ थी।सूरज की किरणें पर्दों से छनकर आ रही थीं।रीनू ने नीचे से आवाज़ दी , " दानीश ,नाश्ता रख दिया है।" वो नीचे आया ,बाल बिखरे ,आँखों में नींद नहीं ,बस किसी अनकही बेचैनी की चमक।" इतनी सुबह ?" उसने कहा।" मुझे आदत है जल्दी उठने की ," उसने जवाब दिया।
दोनों मेज़ के सामने बैठे।चाय की भाप के बीच उनकी निगाहें मिलीं।रीनू ने पूछ ा ," घरवालों को याद नहीं आती ?" " कभ ी – कभी ," दानीश ने कहा , " पर यहाँ ज़्यादा सुकून है।" " सुकून ?" " ह ाँ आपका घर शांत है और आप " वो रुक गया।रीनू ने पूछा , " और मैं ?" " आप भी ," उसने मुस्करा कर कहा , " शांत लेकिन भीतर कुछ बोलता रहता है।"
वो वाक्य जैसे हवा में अटक गया।रीनू ने उसकी तरफ़ देखा – उसकी निगाहों में वही शरारत थी जो पहली बार देखी थी ,लेकिन अब कुछ और भी था ,जैसे वो उसकी सोच पढ़ चुका हो।
रीनू उठी और खिड़की खोल दी।हवा अंदर आई ,पर उसकी साड़ी का पल्लू उड़कर फिर से वही खामोशी तोड़ गया।दानीश ने सिर झुका लिया ,पर उसकी आँखें रीनू पर ही थीं।
रीनू ने कह ा ," तुम्हें काम पर नहीं जाना ?" " ज ाऊँगा ," उसने कहा , " पर पहले ये नज़ारा थोड़ा और देख लूँ।" रीनू पलटी , " क्या कहा ?" " क ुछ नहीं ," उसने मुस्कराते हुए कहा , " बस सुबह खूबसूरत है।"
रीनू की मुस्कान में हिचकिचाहट थी ,लेकिन भीतर कहीं वो हल्की – सी बात उसके मन में ठहर गई।
वो दिन फिर वैसे नहीं रहा।जब भी वो रसोई में होती ,दानीश की परछाई दीवार पर दिखाई देती।और जब वो छत पर कपड़े फैलाती ,दानीश नीचे आँगन में टहलता नज़र आता – जैसे दोनों अनजाने में एक – दूसरे के इर्द – गिर्द घूम रहे हों।
शाम को जब सूरज ढलने लगा ,रीनू ने बाल बाँधते हुए आईने में देखा – उसके चेहरे पर हल्की मुस्कान थी।शायद उसे एहसास था कि अब ये घर वाकई दो लोगों का हो गया है ,बस कहने की देर है।
रात धीरे – धीरे उतर रही थी।रीनू छत पर खड़ी अपने बाल बाँध रही थी ,हल्की हवा उसकी साड़ी के पल्लू को हिला रही थी।उसकी सांसें गहरी हो रही थीं ,और दिल में एक अजीब सा खिंचाव महसूस हो रहा था।पिछली रात की वही सिहरन अब तक उसके अंदर बैठी थी।
नीचे आँगन में दानीश टहल रहा था।उसकी आँखों में वही शरारत थी ,पर साथ में एक गर्माहट भी।उसने देखा कि रीनू का चेहरा हल्का लाल है ,और उसकी नज़रें कुछ कहने की कोशिश कर रही हैं।" इतनी देर तक खड़ी क्यों हो ?" उसने धीरे से कहा ,जैसे आवाज़ हवा में घुल जाए।
रीनू ने पलटकर देखा।" बस हवा लेने आई थी।" उसकी आवाज़ में हल्की लचीलापन और एक अधूरा blush था।दानीश मुस्कराया और थोड़ी दूरी पर खड़ा हो गया।दोनों के बीच की हवा अचानक भारी हो गई।
छत की रेलिंग के पास खड़े होकर रीनू ने कह ा ," तुम यहाँ खड़े रहकर क्या देख रहे हो ?" " क ुछ नहीं बस तुम्हें ," दानीश ने कहा , " और तुम्हारे वो नखरे जो मुझे हमेशा खींचते हैं।" रीनू ने पलकों को झपकाया।उसके दिल में गर्माहट फैल गई ,और गालों पर हल्की लालिमा आई।उसकी नज़रें खुद – ब – खुद दानीश की तरफ़ खिंच गईं।
वो पलंग के पास बैठ गई ,और दानीश थोड़ी दूर खड़ा रहा।दोनों की आँखों में वही अधूरी बात थी – एक teasing, secret attraction,जो शब्दों में नहीं आ पा रही थी।
रीनू ने धीरे से कह ा ," तुम हमेशा ऐसे ही मुझे घूरते रहोगे ?" " नह ीं बस ये कभी – कभी रोक नहीं पाता ," दानीश ने मुस्कराते हुए कहा।उसकी आवाज़ में हल्की सिहरन थी।रीनू ने नज़रें झुका ली ,पर भीतर कुछ और भी उभर रहा था।उसकी सांसें तेज़ थीं ,और दिल की धड़कनें अब सामने खड़े दानीश की मौजूदगी में अलग तरह की गर्माहट महसूस कर रही थीं।
आँगन में एक हल्की हवा ने साड़ी का पल्लू उड़ाया।दानीश ने पल भर के लिए उस नज़ारे को देखा और फिर धीरे से कहा , " तुम्हारी हँसी भी किसी अनकही चाह की तरह है।" रीनू मुस्कराई और पलकें झपकाईं।वह जानती थी कि ये बातचीत अब सिर्फ़ शब्दों तक सीमित नहीं है।आँखों का खेल ,छूने की मामूली कोशिशें ,और अधूरी मुस्कान – ये सब एक अलग तरह का teasing था।
दूसरी तरफ रीनू खुद को रोक रही थी।उसके हाथ हल्के से पसीने में थे ,और गालों की गर्माहट अब बढ़ती जा रही थी।उसकी नज़रों में एक हल्की ,नटखट curiosity झलक रही थी।दानीश ने कहा , " अगर तुम चाहो तो मैं थोड़ा पास आकर बात करूँ।" रीनू ने पलटकर देखा ,और थोड़ी देर की खामोशी के बाद कहा , " बस थोड़ा दूर ही सही।"
वो दूरी ,जो करीब होने के बावजूद बनी हुई थी ,अब और भी teasing और vasna से भरी लग रही थी।दोनों के बीच हवा में एक खिंचाव था – अधूरा ,मगर powerful ।
कुछ देर बाद दानीश धीरे – धीरे पीछे हटने लगा ,पर उसकी नज़रें रीनू की निप्पल की हल्की लालिमा ,बालों की मुलायम छुअन और होंठों की सूखी चमक पर टिकी रही।रीनू ने अपनी साड़ी ठीक की ,पर भीतर एक heat और सिहरन बाकी रह गई।उसने खुद से कहा , " ये खिंचाव अब और नहीं रोक सकता।"
रात की खामोशी में दोनों की धड़कनें एक अजीब rhythm में बह रही थीं।आँगन और छत की दूरी ,नज़रों का खेल ,हल्की मुस्कान और teasing gestures- ये सब अब एक intense suspense बना चुके थे।
और इस suspense में ही रात्रि धीरे – धीरे खत्म हुई।अभी climax आने के लिए नहीं ,पर दोनों के बीच की vasna और craving हवा में घुल चुकी थी।
सूरज धीरे – धीरे ढल रहा था और छत पर रीनू की साड़ी हवा में लहर रही थी।हल्की ठंडी हवा उसके बालों को झुलसा रही थी ,और उसकी नज़रें बार – बार नीचे आँगन की ओर जा रही थीं।दानीश वहीँ खड़ा था ,उसकी आँखों में नटखट चमक और होंठों का खेल साफ़ झलक रहा था।
" इतनी देर तक खड़ी रहोगी ?" उसने धीरे से कहा।रीनू ने पलटकर देखा ,हल्की मुस्कान और आँखों में अधूरी वासना।" बस सोच रही थी ," उसने जवाब दिया।" सोच रही थी ?" दानीश ने पास आकर पूछा , " क्या सोच रही हो ,रीनू आंटी ?" उसकी आवाज़ में हल्की गर्माहट और subtle teasing थी।
रीनू ने बाल पीछे किए और हल्की हँसी में जवाब दिया , " कुछ नहीं बस तुम्हारे नखरे देख रही थी।" दानीश मुस्कराया ,और धीरे – धीरे एक कदम और पास आया।हवा में उनके बीच की दूरी घुल रही थी।दिल की धड़कनें तेज़ ,साँसें गहरी ,और दोनों के बीच एक अदृश्य खिंचाव।
रीनू ने पलटकर देखा।उसकी आँखों में सिहरन थी ,और हाथ हल्का काँप रहा था।उसने कहा , " तुम हमेशा ऐसे छेड़छाड़ करते रहोगे ?" " नह ीं बस कभी – कभी ," दानीश ने धीरे से कहा , " तुम्हारे अंगों की गर्माहट और वो subtle blush मुझे रोक नहीं पाता।" रीनू के गाल और भी लाल हो गए।उसने हवा में एक लंबी सांस ली ,और पलंग की तरफ़ पलटी।
धीरे – धीरे दोनों के बीच एक intimacy का खेल शुरू हुआ।उनके हाथ हल्के से brush हुए ,सिर्फ़ इतना कि दोनों की साँसें रुक जाएँ।दानीश ने मुस्कराते हुए कहा , " तुम्हारी मुस्कान और वो होंठों का खेल हमेशा मुझे खींचता है।" रीनू ने आँखें झपकाईं ,और दिल में एक तेज़ खिंचाव महसूस किया।उसकी नज़रों में नटखट curiosity,उसके blush में subtle वासना ,और उसके हाथों की हल्की सिहरन – सब कुछ अब हवा में घुल गया था।
कुछ देर तक खामोशी रही।बस बारिश की बूंदें छत पर टपक रही थीं ,और दोनों की धड़कनें।रीनू ने धीरे से कहा , " तुम इतने करीब कैसे आ गए ?" " बस तुम्हारे आस – पा स ," दानीश ने मुस्कराते हुए कहा।" और ये गर्माहट तुम्हारे अंगों से उठती हुई " उसकी बातें रीनू के कानों में जैसे आग घोल रही थीं।उसने पीछे हटने की कोशिश की ,पर उसकी खुद की धड़कनें उसे रोक रही थीं।
रीनू ने पल्लू समेटते हुए कहा , " अब काफी है ,दानीश।" " बस थोड़ी देर और ," उसने कहा।उसकी आँखों में teasing, blush,और subtle वासना झलक रही थी।रीनू पलंग की ओर चली गई ,लेकिन उसका मन अभी भी दानीश की नज़रों और उनके बीच की गर्माहट में उलझा हुआ था।
रात के अँधेरे में छत पर हवा फिर हल्की चली।दानीश थोड़ा पीछे हट गया ,पर उसकी निगाहें अभी भी रीनू पर टिकी थीं।रीनू ने आईने में अपनी झाँक कर देखा – गालों की लालिमा ,आँखों का खिंचाव ,और भीतर की सिहरन सब अभी बाकी थी।
" कल फिर मिलोगे ?" दानीश ने धीरे से कहा।" शायद अगर समय मिला।" रीनू ने जवाब दिया ,पर उसके शब्दों में अधूरा blush और नटखट teasing छिपा हुआ था।
छत की खामोशी में दोनों की धड़कनें और भी तेज़ हो गईं।हवा में उनके बीच की subtle intimacy घुल रही थी ,और खिंचाव अब और भी गहरा हो गया।
उस रात रीनू देर तक जागी।उसने खुद से कहा , " ये खिंचाव ये वासना अब कोई रोक नहीं सकता।" पर जैसे ही वो पलंग पर लेटी ,उसने दरवाज़े की तरफ़ देखा – दानीश अभी भी नीचे खड़ा था ,उसकी आंखों में वही नटखट teasing,और होंठों का खेल।
धड़कनें तेज़ ,सांसें भारी ,और suspense अब और भी गहरा।अभी climax नहीं आया ,लेकिन दोनों के बीच की गर्माहट , blush,खिंचाव , subtle चुंबन और वासना हवा में पूरी तरह घुल चुकी थी।
रात गहरी हो चुकी थी।छत पर हल्की हवा चल रही थी ,और रीनू की साड़ी हवा में झूल रही थी।उसके बाल खुल गए थे ,और आँखों में वही नटखट sparkle था ,जो दानीश के ख्यालों में बार – बार चमकता था।उसने खुद से कहा , " ये खिंचाव अब और नहीं रोक सकता।"
नीचे दानीश खड़ा था ,धीरे – धीरे उसकी नज़रें रीनू के अंगों पर जा रही थीं – बस इतना कि blush बढ़ जाए।वह महसूस कर रहा था उसकी गर्माहट ,नटखट मुस्कान ,और subtle चुंबन की कल्पना।
रीनू ने खिड़की की तरफ़ देखा ,पर उसकी आँखें दानीश की तरफ़ टिकी रही।" इतनी देर तक क्यों देख रहे हो ?" उसने पूछा।" बस तुम्हारे नखरे और वो subtle blush देख रहा हूँ ," दानीश ने मुस्कराते हुए कहा।उसकी आवाज़ में हल्की सिहरन थी।
रीनू पलंग के पास चली गई।उसने अंगों को हल्का मोड़ा ,हाथों को खुद पर फेरते हुए।हवा में दोनों के बीच की गर्माहट और खिंचाव अब साफ़ महसूस हो रहा था।" तुम हमेशा ऐसे teasing करोगे ?" उसने पूछा ,हल्की मुस्कान के साथ।" नहीं बस कभी – कभी तुम्हारी वासना और blush मुझे रोक नहीं पाती।"
रात के अँधेरे में दोनों के बीच intimacy का खेल गहराता गया।हल्की छेड़छाड़ ,हाथों का हल्का brush,और होंठों का खेल – सब कुछ हवा में घुल गया।रीनू की सांसें तेज़ और दानीश की नजरें स्थिर थी।
रीनू ने धीरे से कहा , " अब बहुत हो गया।" " बस थोड़ी देर और ," दानीश ने मुस्कराते हुए कहा।उसकी आवाज़ में teasing, blush,और subtle warmth पूरी तरह थी।
हवा में नमी ,पल्लू की हल्की झनझनाहट ,और अंगों की गर्माहट – सब मिलकर एक intense suspense बना रही थी।रीनू ने आईने में देखा ,गाल लाल ,आँखें चमकती हुईं ,और भीतर की सिहरन अभी बाकी थी।
दानीश ने पलंग के पास आकर धीरे कहा , " अगर तुम चाहो तो मैं पास आकर भी देख सकता हूँ।" रीनू ने पलकों को झपकाया , blush और खिंचाव के बीच , " थोड़ा दूर ही सही।" इस दूरी ने teasing और vasna को और बढ़ा दिया।
कुछ देर खामोशी रही।बस उनके बीच हवा , heartbeat और subtle blush का खेल।दानीश ने हाथ बढ़ाया ,हल्का brush हुआ – बस इतना कि दोनों की धड़कनें एक rhythm में आ गईं।रीनू ने नज़रें झुका ली ,पर भीतर की सिहरन और अंगों की गर्माहट साफ़ महसूस हो रही थी।
छत की खामोशी में दोनों की नज़रों का खेल peak पर था।उनकी साँसें भारी ,द िल तेज़ ,और खिंचाव इतनी स्पष्ट कि हर पल suspense बढ़ा रहा था।रीनू ने धीरे कहा , " कल फिर मिलोगे ?" " श ायद अगर समय मिला ," दानीश ने कहा , blush और subtle teasing के साथ।
रात खत्म हुई ,लेकिन दोनों के बीच की गर्माहट , blush,खिंचाव और नटखट teasing अभी भी हवा में घुली हुई थी।अभी climax नहीं आया ,पर suspense और intimate tension अब पूरी तरह peak पर थी।
रात अब पूरी तरह काली थी।छत पर हवा हल्की सी सरसराहट कर रही थी ,और दोनों के बीच की गर्माहट अब हवा में घुल चुकी थी।रीनू खड़ी थी ,साड़ी का पल्लू हल्का उड़ रहा था ,और उसके गालों की लालिमा अब peak पर थी।दानीश पास आया ,और उनकी नज़रों का खेल अब words से आगे बढ़ गया था।
उसने धीरे से कहा , " तुम हमेशा ऐसे नटखट blush करती रहती हो।" रीनू ने पलकों को झपकाया ,और धीरे – धीरे हँसते हुए कहा , " बस तुम मुझे tease कर रहे हो।" दानीश मुस्कराया।उसकी हाथों की हल्की brush,अंगों के खिंचाव और होंठों का खेल – सब कुछ अब climax की तरह build हो चुका था।
रीनू ने पलंग के पास कदम रखा।दानीश भी उसके पास आया।हवा में उनकी साँसें अब एक rhythm में थीं।रीनू ने कहा , " अब और नहीं रुका जा सकता।" " बस थोड़ी देर " दानीश ने कहा ,और उसकी आवाज़ में वही subtle teasing, blush और वासना थी।
धीरे – धीरे दोनों के हाथ आपस में टकराए।हल्का चुंबन ,हल्की मालिश और अंगों का खिंचाव – ये सब climax से पहले का teasing peak था।रीनू ने अपनी नज़रें झुका ली ,लेकिन blush और सिहरन अब नियंत्रण से बाहर थी।उसका दिल तेज़ – तेज़ धड़क रहा था ,और दोनों के बीच की intimate गर्माहट अब हवा में फैल चुकी थी।
दानीश ने धीरे से कहा , " ये खिंचाव ये वासना अब और नहीं रोकी जा सकती।" रीनू ने हल्की हँसी में सहमति दी।दोनों अब पास – पास थे।होंठों का खेल ,हल्की छेड़छाड़ , blush,और अंगों की गर्माहट – सब एक climax moment के लिए तैयार थे।
एक लंबी सांस में दोनों ने नज़रों का final teasing पूरा किया।पल भर के लिए सब कुछ खामोश हो गया – सिर्फ heartbeat और सिहरन।रीनू ने हल्का blush और मुस्कान के साथ कहा , " अब पूरा हुआ।" दानीश ने मुस्कराते हुए सिर झुकाया।दोनों के चेहरे पर वही तेज़ blush,आँखों की चमक और अंदर की अधूरी चाह अब शांति में बदल गई।
रात का suspense अब खत्म हो गया।हवा में अब भी गर्माहट थी ,लेकिन दोनों के बीच का खिंचाव अब release हो चुका था।हल्का blush, subtle blush और intimate teasing ने climax को natural और satisfying बना दिया।
रात धीरे – धीरे शांत हुई।दोनों अपने – अपने कमरे में गए ,लेकिन भीतर की वही अधूरी सिहरन और blush अभी भी linger कर रही थी।अगले दिन फिर वही teasing, blush,नटखट नज़रों का खेल ,और subtle intimate warmth दोनों के बीच बने रहने वाले थे।