नौकरानी की पुरानी डायरी -भाग 1
(शुद्ध देसी, बेधड़क)
मुंबई का अंधेरी इलाका, जहां इमारतें नीले आसमान को छूने की कोशिश करती हैं और ज़िंदगी भागती है – तेज़, बेकाबू, और अकेली।

इसी शहर में, विक्रम और नेहा ने हाल ही में एक पुराना 2BHK फ्लैट खरीदा था। शादी को सिर्फ़ 5 महीने हुए थे, हनीमून की तस्वीरें अभी मोबाइल की गैलरी में ही थीं, लेकिन बिस्तर की गर्मी धीरे-धीरे ठंडी पड़ने लगी थी।
विक्रम एक मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर था – सुबह 9 बजे निकलता, रात को 9 बजे लौटता।
नेहा ने अपने कॉर्पोरेट जॉब को शादी के बाद छोड़ दिया था, और अब पूरे दिन फ्लैट की बालकनी से बाहर की दुनिया को देखती रहती – चुपचाप, बुझती हुई।
एक दिन सोसायटी की मेड बदलने की नौबत आई, और नई औरत आई – शकुंतला।
✨ शकुंतला का पहला प्रवेश:
शकुंतला कोई आम नौकरानी नहीं थी।
उम्र पचास के पार, बालों में चाँदी की लकीरें, लेकिन आँखों में ऐसी चमक जैसे हर राज़ को पढ़ चुकी हो।
उसकी चाल धीमी, मगर ठहराव लिए हुए। वो जब झाड़ू लगाती तो जैसे किसी पुराने मंदिर में आरती हो रही हो।
नेहा ने पहली बार उसे देखा और सोचा – “ये औरत कुछ अलग है…”
“मैडमजी, शकुंतला नाम है। बर्तन, झाड़ू, कपड़े… सब कर लूँगी। एक बार बुलाएँ तो सही…”
नेहा ने हाँ कह दिया – उसे भी किसी ‘जिंदा इंसान’ की ज़रूरत थी जो दिन में उससे कुछ बोले।
🧹 कुछ हफ्तों बाद:
नेहा और शकुंतला के बीच एक चुपचाप रिश्ता बनने लगा।
शकुंतला ज़्यादा बोलती नहीं थी, लेकिन उसकी आँखें बहुत कुछ कह जाती थीं।
वो काम करते-करते नेहा की किताबें, कपड़े, मेकअप, हर चीज़ को ध्यान से देखती – जैसे किसी पुराने अनुभव की परछाईं ढूँढ रही हो।
एक दिन, जब विक्रम ऑफिस गया हुआ था, नेहा ने कहा –
“शकुंतला, ऊपर वाली अलमारी बहुत सालों से नहीं खुली है। आज उसे भी साफ़ कर दो।”
शकुंतला थोड़ी देर चुप रही। उसकी आँखों में कुछ हिला… जैसे किसी भूले हुए पन्ने को दोबारा देख लिया हो।
वो झाड़ू लेकर अलमारी की ओर बढ़ी।
📕 तब गिरी वो पुरानी डायरी…
जब शकुंतला ने ऊपर का सामान निकाला, एक पुरानी, चमड़े की जिल्द वाली डायरी धूल से ढँकी हुई नीचे गिर गई।
नेहा ने उसे उठाया।
पहले पन्ने पर मोटे अक्षरों में लिखा था:
“शकुंतला देवी की निजी डायरी – वर्ष 1996″
“अरे… ये क्या है?”
शकुंतला का चेहरा पीला पड़ गया। वो पीछे हट गई।
“वो… फेंक दीजिए मैडमजी। बेकार की चीज़ है…”
नेहा ने मुस्कराते हुए कहा –
“अब तो पढ़ूँगी ज़रूर। आप इतना घबरा क्यों रही हैं?”
शकुंतला चुप। उसके होंठ काँप रहे थे। मगर आँखों में अजीब चमक थी — जैसे वो चाहती हो कि नेहा पढ़े।
📖 डायरी का पहला चैप्टर:
“12 अप्रैल 1996 – पहली बार जब मालिक ने मुझे बांधा…”
“मैं 25 की थी। मालिक अकेले रहते थे। बीवी मायके चली गई थी।
उस दिन मैं झाड़ू लगा रही थी कि उन्होंने मुझे आवाज़ दी –
‘शकुंतला… आज ज़रा रुकना शाम तक।’
जब मैं किचन में थी, वो पीछे से आए… मेरी कमर पकड़ ली।
‘डर मत… तुझे तकलीफ नहीं दूँगा… सिर्फ़ अपना बना लूँगा।’
उन्होंने मेरी चोटी खींची, और मुझे दीवार से सटा दिया।
मेरे सीने पर हाथ रखकर बोले – ‘अब तू सिर्फ़ मेरी है।’
फिर उन्होंने मेरी साड़ी को खींचकर मेरे हाथ बांध दिए – उसी से।
मैं हिली नहीं… न ही रोई… क्योंकि मुझे पता था – मैं रुक भी गई तो ये रात… मुझे बदल देगी।”
💦 नेहा की प्रतिक्रिया:
नेहा के हाथ काँप रहे थे।
उसका गला सूख गया था।
उसके जांघों के बीच कुछ गरम-गरम सा महसूस हो रहा था…
उसने अनजाने में अपनी पैंटी में हाथ डाला – और पाया… वो गीली हो चुकी है।
“ये… क्या सच में लिखा है इसने?”
उसका मन काँप रहा था। मगर शरीर… जग चुका था।
💬 शकुंतला की मुस्कान:
तभी पीछे से शकुंतला ने धीमे से कहा –
“मैडमजी, वो ज़माना था जब औरतें बोलती नहीं थीं… बस सहती थीं… मगर मैं… मैंने सहते-सहते सिखा दिया कि कैसे एक औरत… मर्द को झुका भी सकती है।”
नेहा ने उसकी आँखों में देखा — वहाँ कुछ था। एक औरत का चुप दर्द… और एक औरत की जीत।
🌙 उस रात…
विक्रम जब घर आया, नेहा तैयार थी — गुलाबी साटन की नाइटी में, बाल खुले, और होंठों पर हल्की लिपस्टिक।
“क्या बात है आज?” विक्रम ने चौंककर पूछा।
नेहा धीरे से आई, उसके कॉलर को पकड़ा —
और पहली बार खुद उसके होठों को चूमा।
“आज मैं तेरी शकुंतला बनना चाहती हूँ…”
उसने फुसफुसाकर कहा।
उस रात, नेहा ने विक्रम से ऐसा प्यार किया — जैसे वो कोई कहानी enact कर रही हो।
उसने खुद की चोली फाड़ दी… अपने हाथ खुद बांध लिए… और कहा:
“आज सिर्फ़ तू बोलेगा… और मैं तेरी हर बात मानूँगी…”
🔚 End of Part 1
👉 Part 2 में:
नेहा डायरी का अगला चैप्टर पढ़ती है — जहाँ शकुंतला की मालकिन भी उस खेल में शामिल हो जाती है, और पता चलता है कि ये सिर्फ़ एक नौकरानी की कहानी नहीं… बल्कि एक तीन लोगों की गहरी, गंदी और ज़िंदगी बदलने वाली तिकड़ी की दास्तान है।
बहुत बढ़िया — अब हम “नौकरानी की पुरानी डायरी – Part 2” शुरू करते हैं, और इस बार कहानी को और गहराई, गर्मी और रहस्य से भरते हैं।
इस भाग में डायरी का अगला पन्ना खुलता है, और शकुंतला की ज़िंदगी का तीसरा पात्र सामने आता है: मालकिन।