नई डायरी की पहली रात

नौकरानी की पुरानी डायरी: भाग 4 (अंतिम)

दिन गुरुवार था, मगर नेहा के भीतर जैसे रविवार की सी अलसाई कामुकता घुली हुई थी।

पिछली रात उसके भीतर जो हुआ था — वो अकेले नहीं हुआ था।
वो अब जान चुकी थी कि उसका शरीर सिर्फ़ एक बीवी का नहीं, बल्कि एक इच्छाओं की कलाकार का है।

डायरी अब खत्म हो चुकी थी — लेकिन उस डायरी की आखिरी लाइन उसके सीने पर खुदी हुई थी:

अब तेरे पन्ने मैं लिखूँगी, मैडमजी…”


📦 अगली सुबह:

डायरी के नीचे एक लिफ़ाफा रखा था, शायद शकुंतला ने खुद छोड़ा था।

नेहा ने उसे खोला —
अंदर एक लाल रेशमी चोली, दो काले रेशमी रिबन, एक पट्टी और एक छोटा गुलाबी नोट था:

आज की रात – तू मेरी होगी। जैसे मैं तेरी थी… अब तू मेरी गुलाम होगी… रज़ामंदी के साथ।”

नेहा की देह में सिहरन दौड़ गई।


🌘 रात का खेल:

रात को नेहा ने खुद को तैयार किया —
बिना अंतर्वस्त्र के सिर्फ़ वही लाल चोली पहनी, जो शकुंतला ने भेजी थी।

उसने कमरे की सारी लाइट्स बुझा दीं।
सिर्फ़ एक मोमबत्ती जलाई — जो धीरे-धीरे पिघल रही थी, जैसे नेहा का सब्र।

ठीक 10:30 पर दरवाज़ा खुला।
शकुंतला अंदर आई — साड़ी कसकर बाँधी थी, और हाथ में वही पुरानी रस्सी और आँखों की पट्टी।


😈 शुरुआत:

“आज मैं तुझसे कुछ नहीं पूछूँगी, मैडमजी…”
“बस तुझे महसूस कराऊँगी, कि नौकरानी बनकर भी कोई औरत… मालकिन कैसे बनती है।

नेहा ने गर्दन झुका दी —
शकुंतला ने उसकी आँखों पर पट्टी बाँधी।

फिर उसके हाथों को रेशमी रिबन से पलंग के पाए से बाँधा।


🔥 दर्द और सुख का संगम:

शकुंतला ने धीरे-धीरे नेहा की चोली उतारी —
नंगे स्तनों पर मोमबत्ती की गरम बूंदें टपकाईं।
नेहा का बदन काँपा… मगर चीखी नहीं।

“ये सिर्फ़ आग नहीं… इबादत है,” शकुंतला फुसफुसाई।

उसने अपनी उंगलियाँ नेहा के जांघों के बीच सरकाईं —
वहाँ नमी की नदी बह रही थी।


🛏️ विक्रम की एंट्री:

तभी कमरे का दूसरा दरवाज़ा खुला —
विक्रम नेहा की आँखों के सामने नहीं था… मगर उसकी खुशबू से वो पहचान गई।

“अब तेरी हक़ीकत विक्रम को दिखाऊँगी…”
शकुंतला ने कहा।

उसने विक्रम से कहा —
“आज अपनी बीवी को वैसे छू… जैसे एक गुलाम को छुआ जाता है… हर आदेश मेरा होगा, और तू करेगा।”

विक्रम चुपचाप सामने बैठा रहा।


💋 गुलामी का पहला आदेश:

“विक्रम… उसके स्तनों को धीरे-धीरे सहलाओ, फिर हल्की चुटकी लो…”
विक्रम ने वैसा ही किया।

“अब उसके पेट पर अपनी जीभ घुमाओ… लेकिन नीचे मत जाना जब तक मैं ना कहूँ…”

नेहा का बदन अब पूरा कांप रहा था —
वो अब रज़ामंदी से बंध चुकी थी… और आनंद के नशे में थी।


🩸 climax:

जब शकुंतला ने इशारा किया, विक्रम ने खुद को नेहा के भीतर डाल दिया।
धीरे… फिर तेज़… फिर थरथराते हुए।

नेहा अब पूरी तरह खुल चुकी थी —
उसके गले से निकलती सिसकियाँ पूरे कमरे को भर रही थीं।

शकुंतला ने एक आखिरी बार उसकी पीठ पर चाबुक फेरा —
“तू अब मेरी है… अपनी नहीं…”

और उसी पल…
नेहा ने एक गहरी चीख के साथ climax किया —
जिसमें पीड़ा भी थी… मगर शुद्ध सुख भी।


🖋️ अगली सुबह:

नेहा के सिरहाने एक नई डायरी रखी थी —
पहले पन्ने पर लिखा था:

नेहा देवी की नई डायरी — शुरूआत: 2025”

उसने मुस्कराकर पहला पन्ना खोला और लिखा:

मैं सिर्फ़ एक बीवी नहीं… मैं एक कल्पना हूँ।आज मैंने खुद को पाया… शकुंतला में।और अब मैं… तुम्हें पाना चाहती हूँ।”


🔚 [End of Part 4 | Series Finale]

✅ Series Summary:

  • Total Parts: 4
  • Style: Raw, Bold, Emotionally Erotic
  • Themes Covered: Maid, Lesbian play, BDSM, Voyeurism, Group control, Power role reversal

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