नौकर की घुसपैठ — जब दीवारें भी देखती थीं

नौकरानी की पुरानी डायरी : भाग 3

सुबह थी। घर में अजीब सी नमी फैली थी — जैसे रात को कुछ ऐसा हुआ हो, जो घर की दीवारों तक में गूंज रहा हो।

नेहा अब इस डायरी की दीवानी हो चुकी थी।
रोज़ सुबह उठकर सबसे पहला काम — डायरी खोलना।
उसका शरीर… उसकी सोच… सब कुछ बदल चुका था।

वो अब सिर्फ़ एक हाउसवाइफ़ नहीं, बल्कि एक औरत थी —
जो दूसरी औरत की अधूरी कहानी को अपने जिस्म से पूरा करना चाहती थी।


📖 डायरी का अगला अध्याय:

“12 अगस्त 1996 – जब नौकर ने झाँका नहीं, हिस्सा लिया…”

“मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि वो दिन आएगा…
जब बाबूजी, मालकिन… और घर का नौकर – तीनों मिलकर मेरे जिस्म से खेलेंगे

उसका नाम था रमेश – उम्र 19 साल। दुबला, लंबा, और हमेशा चुप।

उस दिन मालकिन ने कहा —
‘शकुंतला, आज तेरे साथ कुछ नया होगा… तू खुद को छोड़ देना।’

मैंने हाँ में सिर हिला दिया। अब आदेश पर सवाल नहीं करती थी।

मालकिन ने मेरी आँखों पर पट्टी बाँधी।
फिर मेरी चोली खोली, और नीचे की साड़ी सरका दी।

तभी किसी तीसरे की उंगलियाँ मेरे जांघों पर रेंगने लगीं।
वो कोमल थीं… मगर अनाड़ी।
मैंने पूछा नहीं… क्योंकि अंदर से कुछ और जग चुका था।

फिर मेरी निप्पलों पर दो अलग-अलग स्पर्श हुए – एक भारी, एक हल्का।
और मुझे समझ आ गया — अब तीसरा शरीर भी खेल में चुका है।


😳 नेहा की प्रतिक्रिया:

नेहा बिस्तर पर लेटी थी, डायरी उसके सीने पर।
उसकी उंगलियाँ उसकी नाभि से नीचे सरकती जा रही थीं।

“तीन लोग… एक जिस्म…”
उसके मन में तूफ़ान था — डर और उत्तेजना का।

वो अब सिर्फ़ पढ़ नहीं रही थी, वो जी रही थी।


फिर मालकिन ने मेरे हाथ पीछे बाँध दिए — रस्सी से।
बाबूजी ने मेरी जांघों को फैलाया… और रमेश ने… पहली बार किसी औरत के अंदर उंगली डाली।

वो कांप रहा था। मैंने होंठों से उसकी उंगलियाँ चूस लीं।

मालकिन ने रमेश को मेरे ऊपर लिटा दिया —
उसकी काँपती हुई जाँघों के बीच मेरा गर्म भीगता हुआ अंग था।

‘कर… घुसा दे…’ मालकिन ने कहा।
और रमेश ने मेरी योनि के भीतर खुद को पहली बार… पूरी ताक़त से डाल दिया।

मैं चीख पड़ी… मगर उसी में एक लत बन गई।

बाबूजी मेरे होठों पर अपना मुँह रखे थे।
और मालकिन ने मेरी पीठ पर चाबुक फेरा — हल्की, मगर उग्र।

मैं अब तीनों की थी — एक साथ, एक पल में।
मेरे अंगों पर तीनों के निशान थे — प्यार के, हक के, और पाप के।”


💦 नेहा… अब और न रुक सकी:

नेहा ने खुद को पूरा खोल दिया।
उसने तकिए के नीचे से वाइब्रेटर निकाला (जो उसकी शादी की एक गुप्त खरीद थी)।
और डायरी के हर शब्द के साथ, वो अपनी सांसों को तेज़ करती गई।

उसका हाथ नीचे गया…
और जिस जगह तीन लोग कभी शकुंतला को छूते थे…
वहाँ नेहा अकेली, लेकिन पूरे जोश में थी।

उसकी आँखें बंद थीं…
और अब उसके सपनों में विक्रम नहीं… बल्कि शकुंतला, रमेश और मालकिन एकसाथ थे।


👀 लेकिन एक रहस्य…

जब नेहा climax के बाद बेहोश-सी हुई,
तो खिड़की के पर्दे से किसी की परछाईं हिली।

वो शकुंतला थी।
हाथ में वही डायरी का डुप्लीकेट था।

उसने धीरे से फुसफुसाया:
“तुम अब उस कहानी की नायिका बन चुकी हो, मैडमजी…
अब तुम्हारे पन्ने लिखे जाएँगे… मेरी कलम से।”


🔥 Ending Hook for Part 4:

उस रात नेहा ने शकुंतला से कहा —
“अब मैं तुम्हारी डायरी नहीं… तुम्हारी छोटी मालकिन बनना चाहती हूँ।”

शकुंतला मुस्कराई —
“तो फिर तैयार हो जा… उस खेल के लिए…
जिसमें तू शिकारी भी होगी… और शिकार भी।


🔚 [End of Part 3]
📝 Part 4 में: नेहा खुद बनती है डायरी की लेखिका — विक्रम और शकुंतला के साथ live experiment शुरू होता है।
और एक ऐसा मोड़ आता है… जो सब कुछ बदल देता है।

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