बाथरूम से आती सिसकियाँ

पड़ोसन के परदे के पीछे: भाग 2

🌃 रात का सन्नाटा

रात के लगभग 11 बजे थे।
आरव अपने बेड पर लेटा था, प्रियंका यानी बीवी, थकी हुई सो चुकी थी।

गर्मियों की रात थी, खिड़कियाँ खुली थीं, और ऊपर वाले फ्लैट से हल्की-हल्की उह्ह… हाँ… ओह्ह…” की आवाज़ें आरही थीं।

वो आवाजें आरव के कानों में सीधी चूत की गर्मी बनकर उतरने लगीं।

उसने करवट ली… और धीरे से उठा


🚶‍♂️ ऊपर की तरफ खिंचाव

आरव नंगे पाँव सीढ़ियाँ चढ़ने लगा।

नीलिमा का दरवाज़ा आधा खुला था… मगर कमरे की बत्ती बुझी हुई।

बाथरूम की लाइट जल रही थी, और उसी से लगातार हल्की-हल्की आहें आ रही थीं।

“ओह्ह… और अंदर कर न… हाँ… वहीं… वहीं… मेरी चूत के अंदर तक…”

“तू ना चूसते-चूसते पागल कर देगा बे…”

आरव का लंड अब पूरी तरह तन चुका था।
उसने दरवाज़े की झिरी से झाँकना शुरू किया।


🛁 अंदर का मंज़र

नीलिमा बाथरूम में नग्न खड़ी थी, कमर तक भीगी हुई।

उसने एक हाथ से शॉवर पकड़ा हुआ था… और दूसरा हाथ अपनी चूत के ऊपर।

शॉवर की तेज़ धार उसकी चूत से टकरा रही थी और वो करवट लेकर उसपर गीली सिसकियाँ छोड़ रही थी।

उसके बोब ऊपर-नीचे हिल रहे थे… और वो धीरे-धीरे अपने निचले होंठ काटती हुई बोली —

“माँ की चूत… तू तो असली चाटू निकला बे…”

नीचे एक vibrater रखा था, जो कभी-कभी उसके टखनों से टकरा रहा था।


🧍‍♂️ आरव की उलझन… और उत्तेजना

आरव वहीं खड़ा रहा… साँसें तेज़ हो रही थीं… उसने नीचे अपनी पैंट सरकाई और धीरे-धीरे लंड पर हाथ फेरने लगा।

उधर नीलिमा अब दीवार पर हाथ रखकर झुकी थी —
उसकी गांड गोल और भीगी दिख रही थी… और चूत से पानी की बूंदें नीचे टपक रही थीं।

“तू पीछे से ठोकता ना आरव… तो आज मैं बिछ ही जाती…”

“इतनी चुदकन आई है कि बूर फटने को है…”

आरव का लंड अब जैसे खून से खिंच गया हो…
उसने दीवार पकड़कर एक जोर की रगड़ मारी और लौड़ा तड़ाक से फूट पड़ा


😱 अचानक टकटकी

अगले ही पल… नीलिमा ने मुड़कर दरवाज़े की ओर देखा।

उसने मुस्कराते हुए तौलिए से अपनी चूत पोछी… और ज़ोर से कहा —

आरवअगली बार खुद मत घिसअंदर आकर गाड़ देना…”


🌌 नीचे लौटना

आरव काँपते हुए नीचे लौटा।
उसका लंड अब ढीला था, मगर दिमाग और चूत की सिसकियाँ अब तक गूँज रही थीं।

प्रियंका सोई हुई थी… और आरव की सोच में नीलिमा की भीगी चूत, उसका टपकता बदन और वो गरम साँसें थीं।


📓 डायरी का नया पन्ना

अगली सुबह फिर नीलिमा की डायरी आरव के दरवाज़े पर रखी मिली।

पन्ने पर लिखा था —

“अब तू सिर्फ देख नहीं सकता बे… अगली बार गांड भी मारनी पड़ेगी…”

अब से हर बुधवार मेरा लंड तू होगा… समझा?

🔞 भाग 3 – फुर्सत वाले शुक्रवार

(Mainly Bold, with sharp Very Bold spice in climax)


📆 शुक्रवार की दोपहर

आज प्रियंका मायके गई थी। आरव के पास पूरा घर खाली था।
दोपहर की धूप में वो सिर्फ शॉर्ट्स पहनकर बैठा चाय पी रहा था।

तभी दरवाज़े की घंटी बजी।

दरवाज़ा खोला, तो सामने वही — नीलिमा — हल्के नीले रंग की साड़ी में, बिना ब्लाउज़,
और बाल हल्के गीले। चेहरा चमक रहा था… मगर उसकी आँखें उससे भी ज़्यादा।

“शक्कर ख़त्म हो गई थी… सोचा तुमसे माँग लूँ…”, वो बोली।

“और हाँ… अगर अकेले हो तो दो मिनट बैठ जाऊँ?”

आरव का लंड वहीं से हल्का खड़ा होने लगा।


🫖 शक्कर और शरारत

आरव उसे किचन तक ले गया। उसने शक्कर का डब्बा उठाया और नीलिमा की तरफ बढ़ाया।

नीलिमा ने डब्बा लेते हुए हल्के से उसके हाथ को छुआ… और कहा:

“तुम्हारे हाथ बड़े मज़बूत हैं… लगता है अच्छी गाढ़ी चाय भी बना लेते हो… और कुछ और भी?”

आरव मुस्कराया, “जो चाय पसंद आए, वो बना सकता हूँ।”

“और अगर मैं कहूँ, मुझे आज चूसने लायक बर्फी चाहिए…?”

आरव अब खुद को रोक नहीं पाया। उसकी आँखें नीलिमा के उभरे हुए चूचों पर जा चुकी थीं।


🛏️ बेडरूम का नज़ारा

“आओ… अंदर आओ,” आरव ने कहा।

नीलिमा हँसते हुए बेडरूम में गई।
वो खुद पलंग पर बैठी, पल्लू कमर पर सरका और बोली —

“आज कोई रोकने वाला नहीं… तो रुकोगे क्यों?”

आरव झुकते हुए उसकी साड़ी खींचने लगा…
ब्रा नहीं थी — चूचे एकदम नंगे… थोड़े भारी, मगर चुसने लायक।

उसने एक चूचा मुँह में लिया… और जीभ से गोल-गोल घुमाने लगा।

नीलिमा कराह उठी — “ओह्ह्ह… जोर से… चूस बे… दूध निकाल देना आज!”


💋 असली गरमी

नीलिमा अब पूरी खुल चुकी थी।
उसकी साड़ी नीचे तक उतर चुकी थी… और चूत से गीली गर्मी की खुशबू आने लगी थी।

आरव ने उसका पाँव उठाया… और सीधा चूत पर मुँह रख दिया।

“तू तो सच में जानवर है बे… ओह्ह्ह… मेरी बूर चाट… हाँ… वहीं… चाट बे मेरी चूत…”

आरव जीभ से बारी-बारी उसकी चूत के होंठ चाटने लगा।

नीलिमा की साँसें तेज़… हाथ उसके बालों में… और पैर काँपते हुए…

“अबे, अब डाल दे… बहुत हुआ… गाड़ मुझे बे… मेरी बूर चीर डाल!”


🍆 लंड की चढ़ाई

आरव ने अपने शॉर्ट्स उतारे।
लंड खड़ा था… एकदम सीधा, गरम।

नीलिमा ने उसे पकड़ा, हाथ में झुलाया… और कहा:

“तेरा लौड़ा देख के ही मेरी गांड भी भीग गई बे…”

फिर वो पलटी… चारों खाने चित…

आरव ने उसकी गांड की सलवटें अलग कीं… और एक झटके में बूर में लंड घुसेड़ दिया।

“आआहहह… ओह्ह्ह… ऐसे ही… जोर से… ठोक बे… आज मेरी चूत की आग बुझा…”


🫠 चरमराता चारपाई

चारपाई चरमरा रही थी… और आरव की हर रगड़ पर चूत से आवाज़ें आ रही थीं – चप… चप… चप…

नीलिमा अब बेसुध थी… मगर उसका मुँह अब भी बक रहा था:

“तेरे जैसी चाट… तेरे जैसी ठोक… मेरे मर्द ने कभी नहीं दी…

हर शुक्रवार तू ही मेरी बूर गाढ़ेगा बे… तेरी गांड चाट लूँगी मैं…


💦 अंत

आरव ने ज़ोर का आखिरी झटका मारा… और लंड को बाहर खींचते ही उसपर फूट पड़ा।

नीलिमा की पीठ और चूत दोनों गीली हो चुकी थीं।

वो हँसते हुए बोली:

“फुर्सत वाले शुक्रवार अब तेरे नाम… हर हफ्ते मेरी चूत के दरवाज़े तेरे लिए खुले हैं बे…”

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