नौकरानी की पुरानी डायरी : भाग 2
सुबह के 10 बजे थे। विक्रम ऑफिस जा चुका था।
नेहा को रात की बात याद थी — कैसे उसने विक्रम को बांधकर, उसकी आँखों में आग भर दी थी।
उसने खुद के भीतर एक नई नेहा को जन्म देते देखा… वो जो बस रोमांस नहीं, पूरी तरह सैक्स की सत्ता संभालना चाहती थी।
अब वो डायरी की अगली कड़ी पढ़ने को बेताब थी। उसने खुद को लॉक किया, पंखा धीमा किया, और एक बार फिर वो डायरी खोल ली।
📖 डायरी का अगला अध्याय:
“4 जून 1996 — मालकिन की मनचली हरकतें”
“मैं समझती थी सिर्फ बाबूजी ही मुझमें रुचि रखते थे। लेकिन एक दिन… मुझे मालकिन ने बुलाया।
दोपहर के 2 बजे होंगे। घर में सन्नाटा था। बाबूजी बाहर गए थे।
मैं कमरे में झाड़ू लगा रही थी। मालकिन बिस्तर पर लेटी थीं, नीली साड़ी में, बिना ब्लाउज़ के।
उन्होंने धीमे स्वर में कहा —
‘शकुंतला… ज़रा मेरी पीठ पर तेल लगा दे।’
मैंने डरते हुए तेल उठाया। जब हाथ उनकी नग्न पीठ पर पड़ा… वो हल्का सिहर गईं।
मैंने धीरे-धीरे रगड़ना शुरू किया… लेकिन तभी मालकिन ने पलटकर मेरा हाथ पकड़ लिया और बोलीं —
‘तेल लगा रही है… या जला रही है?’

फिर उन्होंने मेरा हाथ चूमा…
और दूसरी हथेली से मेरे स्तनों पर आकर रुक गईं।”
नेहा की आँखें चौड़ी हो गईं।
उसकी उंगलियाँ डायरी के पन्नों पर कांपने लगीं।
“मालकिन ने मेरी चोली खोल दी।
मेरी छातियाँ खुली हवा में कांप रही थीं।
वो नीचे झुकीं… और अपने होंठों से मेरी एक-एक निप्पल को गीला करने लगीं।
मैंने आँखें बंद कर लीं… वो स्वाद… वो गीली गर्मी… मेरे जिस्म में बिजली सी दौड़ गई थी।
फिर उन्होंने मेरे पल्लू से मेरा पायजामा नीचे खींच दिया।
मेरी जाँघों के बीच वो अपनी उंगलियाँ ले आईं — और धीरे-धीरे…
मैंने खुद को किसी और ही लोक में पाया।”
😳 नेहा की हालत:
नेहा की उंगलियाँ अब डायरी पर नहीं — अपने शरीर पर थीं।
उसका पाजामा आधा नीचे खिसक चुका था।
उसकी दो उंगलियाँ उसके भीगेपन में खो चुकी थीं।
उसने करवट ली, और तकिए को अपने जांघों के नीचे दबा लिया —
अब ये पढ़ाई नहीं रही… ये अनुभव था।
“मैं चीखना चाहती थी… मगर मेरी आवाज़ गले में ही अटक गई थी।
मालकिन की उंगलियाँ मुझमें अंदर तक उतर गईं थीं।
उनकी साँसें मेरी गर्दन पर, और होंठ… मेरे स्तनों पर।
फिर उन्होंने कहा —
‘शकुंतला… तू सिर्फ़ बाबूजी की नहीं… अब मेरी भी है।’
और उस पल… मुझे पता था — मैं अब सिर्फ़ एक नौकरानी नहीं रही।
मैं… एक रहस्य बन चुकी थी… दो दिलों का, दो जिस्मों का… एक गहरी तिकड़ी का हिस्सा।”
🛏️ उसी शाम:
शाम को विक्रम लौटा, तो नेहा नंगी खिड़की के सामने खड़ी थी।
पलंग पर साड़ी पड़ी थी… मगर शरीर पर कुछ नहीं।
विक्रम हैरान।
“नेहा… सब ठीक है?”
वो बोली —
“आज तेरी बीवी नहीं… तेरी मालकिन खड़ी है।”
उसने विक्रम को पीछे से बाँध दिया —
बेल्ट से उसकी कलाई को पलंग के पाए से।
और फिर वो करने लगी वही… जो शकुंतला की मालकिन ने कभी उससे किया था।
👁️ पीछे से एक निगाह…
लेकिन एक चीज़ ने उसे और विचलित किया।
जब वो और विक्रम बिस्तर पर उलझे हुए थे…
कमरे के बाहर गलियारे में शकुंतला की परछाई दिखी।
वो रुकी नहीं… आगे बढ़ गई।
लेकिन नेहा की आँखें बंद नहीं हो पाईं।
क्या शकुंतला जानती थी कि डायरी अब पढ़ी जा रही है?
🔥 Ending Hook for Part 3:
अगले दिन, नेहा ने शकुंतला से पूछा —
“तुमने कभी… किसी को एक साथ दोनों के साथ देखा है?”
शकुंतला मुस्कराई —
“मैडमजी… मेरा नाम शकुंतला है, मगर मेरी कहानी सीता-सावित्री जैसी नहीं… वो कहानी है जिसमें मालिक भी मेरा था… और मालकिन भी…”