Train Tales – Part 1
🌙🚆 हनीमून ट्रेन का राज़ – Part 1
Summary:
दूल्हा-दुल्हन हनीमून पर जाने के लिए लक्ज़री ट्रेन में सफर कर रहे होते हैं। लेकिन रात को compartment की दीवार के उस पार, दूल्हे का खुद का ससुर अपनी दूसरी शादी की दुल्हन के साथ मौजूद होता है। आधी रात को compartments की दरवाज़े गलती से खुल जाते हैं, और दो जेनरेशन के जोड़े आमने-सामने आ जाते हैं। शर्म और संकोच की जगह धीरे-धीरे शराब, तन्हाई और खून का रिश्ता ही सबसे बड़ा taboo खेल बन जाता है। सुबह तक ट्रेन के हिलते हुए डिब्बे में यह तय ही नहीं रहता कि किसका honeymoon किसके साथ था।
बाहर बारिश की बूँदें शीशे से टकरा रही थीं… ट्रेन पटरी पर झटके मार रही थी… और compartment के अंधेरे में दो-दो नए जोड़े अपनी नयी-नयी प्यास बुझाने की कोशिश में थे।
नेहा ने हल्की-सी साड़ी पहनी थी, चुनरी ढीली होकर कंधे से फिसल रही थी। उसके गोरे उभरे हुए स्तन बार-बार झाँक रहे थे। आरव ने पास खींचते हुए धीमे से उसके कान में फुसफुसाया –
“आज पहली बार अकेले मिले हैं… अब रोकूँगा नहीं।”
उसकी हथेली सीधी नेहा की कमर से होते हुए नितम्बों तक पहुँच गई। नेहा हल्का-सा काँपी, होंठ काटते हुए बोली –
“आरव… धीरे… कोई सुन लेगा…”
लेकिन compartment की पतली दीवार के उस पार, कविता और राघव भी बैठे थे। कविता का ब्लाउज़ गीला था, उसमें से उसकी गोल मटोल छातियाँ साफ़ झलक रही थीं। राघव की नज़रें बार-बार उसकी जाँघों पर अटक रही थीं।
कविता ने हल्की हँसी में कहा –
“लगता है सामने वाले जोड़े का honeymoon शुरू हो गया…”
उसकी आँखों में शरारत थी, और होंठों पर गीलापन।
आरव और नेहा को शायद सुनाई भी दे गया, लेकिन अब दोनों बेकाबू हो चुके थे।
🚆 ट्रेन हिली, और उसी झटके में आरव ने नेहा की साड़ी कमर से नीचे खींच दी।
उसकी चमचमाती गोरी जाँघें बाहर आ गईं।
नेहा ने दबे स्वर में कराहते हुए कहा –
“आह्ह्ह… आरव… पागल हो गए हो क्या…”
आरव उसके नर्म स्तनों पर झुक गया, होंठों से चूसते हुए बोला –
“तेरी ये मलाईदार छातियाँ… आज रात निचोड़ कर ही मानूँगा।”
नेहा की साँसें भारी हो गईं, उसने अपनी उंगलियों से आरव के बाल खींच लिए।
उधर दूसरी तरफ, कविता और राघव भी अब शांत नहीं रह पाए।
राघव की आँखें फटी की फटी रह गईं जब उसने देखा कि दरवाज़ा अधखुला था, और सामने आरव अपनी पत्नी की छाती मुँह में दबोचे था।
कविता ने अपने होंठों पर जीभ फेरते हुए धीरे से फुसफुसाया –
“इतना जवानी का जोश… देख कर तो मेरा भी तन सुलग रहा है…”
राघव ने उसकी हथेली पकड़ी और उसकी साड़ी के नीचे सरकते हुए बोला –
“तो क्यों रोक रही हो खुद को… तेरी देह तो अभी से भीग चुकी है।”
कविता हल्के से सिसकी –
“म्म्म… मत… और डालो हाथ…”
ट्रेन की सीटी गूँजी… और compartments के बीच का दरवाज़ा अब पूरी तरह सरक चुका था।
चारों की नज़रें एक-दूसरे से टकराईं।
लाल आँखें… गरम साँसें… और जिस्म की प्यास अब रिश्तों से बड़ी लग रही थी।
दरवाज़ा पूरी तरह सरक चुका था। compartment में चारों की आँखें टकराईं।
नेहा हड़बड़ाकर अपनी चुनरी सँभालने लगी, मगर तब तक उसके गोरे, गदराए हुए स्तन आरव के हाथों में कैद थे।
आरव गरम साँसें फेंकते हुए उसकी गर्दन पर दाँत गड़ा रहा था –
“तेरी गर्दन से निकलती ये खुशबू… अब तो और चखूँगा मैं।”
नेहा ने कराहते हुए होंठ काटे –
“म्म्म… छोड़ो न… सामने लोग देख रहे हैं…”
लेकिन उसकी भी कमर बार-बार मटक रही थी।
आरव की उँगलियाँ अब उसकी गीली चूत के ऊपर पहुँच चुकी थीं, साड़ी और पैंटी खिसकाकर सीधे गीले दरवाज़े पर दबाव बना रहे थे।
नेहा सिसकते हुए काँप उठी –
“आह्ह्ह… आरव… तेरा लंड अभी से चाहिए मुझे…”
🍷 उस पार, कविता और राघव ये सब देख कर बेकाबू हो चुके थे।
कविता ने राघव का हाथ पकड़कर अपनी जांघों के बीच सरका दिया।
उसकी आँखें आरव की मर्दाना छाती पर टिकी थीं और होंठ काँप रहे थे।
कविता (साँसें टूटी हुई): “देखो कैसे चाट रहा है वो अपनी बीवी की चूत… म्म्म… मैं भी चाहती हूँ कोई मुझे ऐसे ही निचोड़ ले…”
राघव की साँसें भारी हो गईं। उसने अपनी उँगलियों से कविता की भीगी हुई चूत सहलाई और फुसफुसाया –
“अगर तुझे सच में चाहिए… तो आज हम भी मर्यादा तोड़ देंगे।”
कविता ने आँखें बंद कर लीं। उसकी चूड़ियाँ खनकीं जब राघव ने उसके ब्लाउज़ का हुक खोलकर नंगी छातियाँ बाहर निकाल दीं।
वो भारी गोल मटोल स्तन पसीने और लार से चमकने लगे जब राघव ने पूरे मुँह से चूसना शुरू किया।
कविता कराहते हुए: “आह्ह्ह… और दबाओ… मेरी निप्पल चबा लो…”
🚆 compartment अब पूरा मस्ती का अखाड़ा बन चुका था।
आरव ने नेहा को बेड पर दबाया, उसकी टाँगें ऊपर उठाकर अपने मोटे, धड़कते हुए लंड को उसकी गीली चूत के मुहाने पर रगड़ते हुए बोला –
“अब और इंतजार नहीं… तेरी चूत को फाड़ कर रख दूँगा।”
नेहा की आँखें पलट गईं, उसने खुद अपनी टाँगें फैलाकर चीखते हुए कहा –
“हाँऽऽ… डाल दे पूरा… फाड़ दे मुझे आज रात…”
🥵 उसी पल, कविता और राघव भी दरवाज़े के पास आ गए।
कविता की आँखें अब आरव के मोटे लंड पर जमी थीं… और राघव की नज़रें नेहा की फटी हुई चूत पर।
राघव ने धीरे से बुदबुदाया –
“कमाल है… मेरी बहू की चूत इतनी रसदार होगी, कभी सोचा भी नहीं था…”
कविता ने होंठ भींचे और हाँफते हुए कहा –
“और तेरे दामाद का लंड… बस देख कर ही मेरी चूत फटने लगी है…”
आरव ने झटके से नेहा की साड़ी, पैंटी सब उतार फेंकी। उसकी गोरी, चिकनी चूत बालों की हल्की झलक के साथ पूरी तरह भीगी हुई चमक रही थी।
उसने अपना धड़कता, मोटा, गरम लंड नेहा की चूत पर जोर से धकेल दिया।
“आह्ह्हऽऽऽ…” नेहा चीख उठी, उसकी कमर ट्रेन के झटके की तरह हिल गई।
आरव ने पूरा लंड एक ही धक्के में अंदर घुसा दिया।
“तेरी चूत तो जैसे पहले से मेरा इंतज़ार कर रही थी, बेबी…”
वो थरथराते हुए धक्का पर धक्का मार रहा था।
नेहा बिस्तर की चादर नोचते हुए कराहने लगी –
“हाँऽऽ… फाड़ दे… जोर से ठोक… और गहरा डाल दे… मेरा गर्भाशय तक भर दे…”
🚆 compartment में अब सिर्फ थप–थप–थप की आवाज़ गूंज रही थी – आरव का लंड उसकी भीगी चूत में बार-बार टकरा रहा था।
नेहा की छातियाँ ऊपर-नीचे उछल रही थीं, उसके निप्पल आरव के मुँह में बार-बार दब रहे थे।
उधर, राघव ने कविता को अपनी गोद में उठाकर दीवार से चिपका दिया।
उसकी साड़ी पूरी तरह फर्श पर थी और उसकी गीली चूत रस टपका रही थी।
राघव ने गरजते हुए अपना लंड उसके अंदर ठेल दिया।
कविता ने आँखें बंद कर जोर से चीखा –
“म्म्म्म… आह्ह्ह… हाँऽऽ… ऐसे ही ठोक… बूढ़े होकर भी तू मुझे फाड़ रहा है…”
राघव उसके कान चबाते हुए बोला –
“बूढ़ा नहीं हूँ अभी… देख मेरी ताकत, तुझे घुटनों पर गिरा दूँगा…”
उसने कविता की टाँगें ऊपर उठाकर पूरा जोर लगाया।
🥵 दोनों तरफ अब सिर्फ गालियाँ, कराहटें और चुदाई की धमाकेदार आवाज़ें थीं।
नेहा हाँफते हुए आरव से बोली –
“तेरा लंड इतना मोटा है कि मेरी चूत फट रही है… ओह्ह्ह… लेकिन रुकना मत…”
आरव ने पसीने में डूबा चेहरा उसकी गर्दन में छुपाकर दहाड़ा –
“आज तुझे पूरा खाली कर दूँगा… दूध की तरह बहा दूँगा तेरी चूत में…”
कविता भी अब बेकाबू हो चुकी थी। उसने राघव की पीठ नोचते हुए चीखा –
“और जोर से… मेरे गर्भ में भर दे… मैं चाहती हूँ तेरा बीज मेरे अंदर फूटे…”
🚆 ट्रेन और तेज़ झटके मार रही थी, जैसे चारों की चुदाई की धुन से कदम मिलाकर दौड़ रही हो।
अब चारों के बीच नज़रें मिलने लगी थीं।
नेहा की नज़रें राघव के धड़कते लंड पर जा अटकीं, और कविता की आँखें आरव की मर्दाना छाती व मोटे लंड पर टिकी थीं।
नेहा ने हाँफते हुए धीरे से कहा –
“अगर… अगर वो भी मुझे एक बार छू ले… तो शायद मैं पागल हो जाऊँ…”
कविता की साँसें और भारी हो गईं –
“और मैं… मैं चाहती हूँ तेरे दामाद का लंड अपनी चूत में…”
🔥 जैसे-जैसे चुदाई अपने चरम पर पहुँची, चारों की साँसें एक-दूसरे से टकराने लगीं।
पसीने और रस में भीगे हुए, सबकी नज़रें बार-बार दूसरे के बदन पर अटक रही थीं।
नेहा ने हाँफते हुए देखा कि राघव का मोटा लंड अभी भी तना हुआ है, और उसके मन में एक सनसनी दौड़ गई।
वो बुदबुदाई –
“काश… एक बार… वो भी मुझे ठोक दे…”
उधर कविता का हाथ अनजाने में आरव की जाँघ पर फिसल गया। उसकी आँखों में जलती आग ने सब साफ कर दिया।
“तेरा दामाद है… पर आज मैं चाहती हूँ उसका मुँह मेरी चूत पर हो…”
🚆 compartment में अचानक सन्नाटा छा गया।
सबकी धड़कनें पटरी की रफ्तार से भी तेज़ दौड़ने लगीं।
👀 चारों की आँखें मिल रही थीं – कोई कुछ बोल नहीं रहा था, पर हवाओं में अब एक नया खेल पनप चुका था।
उस रात किसी ने मुँह से कुछ नहीं कहा, लेकिन सबके जिस्म बोल चुके थे।
कल सुबह का उजाला… और अगली रात का अंधेरा…
दोनों ही अब एक नई अदला–बदली वाली वासना का वादा कर रहे थे। 🔥
🚆 ट्रेन की रात अब और भी भारी हो चुकी थी। डिब्बे में पीली लाइट हल्की टिमटिमा रही थी, बाहर बारिश की बूँदें अभी भी शीशे पर फिसल रही थीं। compartment का दरवाज़ा आधा खुला था… और अंदर की हवा में पसीने, शराब और वासना की गंध घुल चुकी थी।
नेहा ने शर्माते हुए आँचल ठीक किया, मगर उसकी आँखें बार-बार कविता की तरफ़ खिंच जा रही थीं। कविता ने भी एक हल्की मुस्कान फेंकी और धीरे-धीरे अपनी साड़ी का पल्लू पीछे खिसका दिया। उसके गहरे कट ब्लाउज़ से झाँकते उभरे गोरे उरोज… आरव की सांसें तेज़ कर रहे थे।
👀 राघव की आँखें अब नेहा पर गड़ी थीं। उसने धीरे से कहा —
“बहू… इतना मत छुपाओ… आज तो रात हमें ही देखनी है।”
नेहा काँप उठी… मगर उसके भीतर भी कोई दबा हुआ लावा फूटने लगा था।
🔥 बिल्डअप का खेल
आरव पास बैठी कविता की जांघ पर हाथ रख चुका था। कविता ने हल्की कराह निकाली और उसके कान में फुसफुसाई —
“इतने तगड़े हो… नेहा को कैसे संभालते हो?”
आरव हँसते हुए बोला —
“आज शायद तुम भी जान जाओगी…”
इतना कहते ही उसने कविता की टाँग दबाई, और उसका आँचल सरक कर ज़मीन पर गिर गया।
🫦 उधर, राघव धीरे-धीरे नेहा की पीठ पर हाथ फेर रहा था। नेहा की आँखें बंद हो गईं, होंठ काँपने लगे। उसने दबी आवाज़ में कहा —
“ससुर जी… ये सही नहीं है…”
राघव ने उसके कान चाटते हुए फुसफुसाया —
“सही-गलत सब भूल जाओ बहू… ट्रेन चल रही है, और अब रात हमें रोक नहीं सकती।”
नेहा की साँसें भारी हो गईं… उसके हाथ अनजाने में राघव की छाती पर टिक गए।
💦 वासना का तूफ़ान
अब compartment में कपड़ों की सरसराहट, साँसों की आवाज़ और ट्रेन के झटकों का शोर घुलने लगा था।
आरव ने कविता को अपनी गोद में खींच लिया। उसकी साड़ी ऊपर खिसक गई, और मोटी जाँघें चमक उठीं।
“आह्ह… धीरे…” कविता कराही, मगर उसका हाथ खुद आरव की बेल्ट खोल रहा था।
👅 उधर, राघव ने नेहा का आँचल पूरी तरह उतार दिया था। उसके गोरे, भरे हुए स्तन झूम उठे।
“कमाल का जिस्म है तेरा…” राघव ने कसकर दबाते हुए कहा।
नेहा ने शर्म से आँखें बंद कर लीं… मगर अगले ही पल उसके होंठों से सिसकारी निकली —
“आह्ह्ह… ससुर जी…”
🛌 पोज़िशन और डर्टी टॉक
आरव ने कविता को बिस्तर पर झुका दिया और पीछे से उसकी कमर पकड़ ली।
“तैयार हो?” उसने दबे स्वर में पूछा।
कविता ने पीछे झाँकते हुए होंठ चाटे —
“आरव… मुझे चीर दो…”
और अगले ही झटके में compartment कराहटों से भर उठा।
“धड़ाक… धड़ाक…” ट्रेन के झटकों के साथ-साथ आरव के धक्के कविता की कमर में लग रहे थे।
उधर राघव ने नेहा को गोद में उठाया और उसके होंठ चूसते हुए बोला —
“आज तू मेरी है बहू…”
नेहा काँपते हुए बोली —
“रुकिए… आह्ह्ह… नहीं… और… और जोर से…”
उसके शब्द खुद उसकी भूख का इज़हार कर रहे थे।
🔥💦 अब compartment में सिसकारियाँ, कराहें, “आह्ह… ओह्ह… और अंदर…” जैसी आवाज़ें गूँज रही थीं।
आरव और कविता की चुदाई पीछे से तेज़ होती गई, और राघव-नेहा आमने-सामने lip-to-lip लिपट कर एक-दूसरे को तोड़ने लगे।
👉 और यहीं से कहानी अब और खतरनाक मोड़ ले रही थी… क्योंकि जैसे-जैसे रात बढ़ रही थी, अब रिश्तों की swapping पूरी तरह खुलने वाली थी।
(Climax) – पसीनों में भीगी रात
🚆 compartment अब कराहटों और जिस्मानी आवाज़ों से भर चुका था। बाहर ट्रेन की खड़खड़ाहट और अंदर चारों जिस्मों की टकराहट।
आरव ने कविता की कमर पकड़ कर पीछे से जोरदार झटका मारा।
“धड़ाक… धड़ाक…”
कविता की कराह compartment में गूँजी —
“आह्ह्ह… आरव… जोर से… और अंदर डालो… चीर दो मुझे…”
उसके लंबे बाल बिखर गए थे, स्तन उछल-उछल कर झूल रहे थे। हर धक्के के साथ उसका पूरा शरीर थरथरा रहा था।
💦 उधर राघव ने नेहा को बिस्तर पर लिटा दिया। उसका दुपट्टा कब का गिर चुका था, ब्लाउज़ का हुक आधा टूटा हुआ था।
नेहा हाँफते हुए बोली —
“नहीं… आह्ह… ये पाप है… मगर… रुकना मत…”
राघव ने उसके होंठों को जोर से दबाया और फिर उसके गोरे, भरे हुए उरोज मुँह में भर लिए।
“म्म्म्म्म… आह्ह्ह…” नेहा का पूरा जिस्म मरोड़ खा गया।
🔥 पोज़िशन का खेल
आरव ने कविता को झुका कर doggy style में पकड़ लिया।
“अब तो तू मेरी ही होगी…” उसने कमर पकड़ते हुए और धक्के मारते हुए कहा।
कविता बेकाबू होकर चिल्लाई —
“हाँ… आरव… फाड़ दे मुझे… आह्ह्ह्ह…”
पीछे से उसके स्तन नीचे उछल-उछल कर टकरा रहे थे, और उसका पूरा शरीर पसीने में भीग चुका था।
👅 वहीं राघव ने नेहा को अपनी गोद में बिठा लिया। नेहा की साड़ी कमर तक खिसक गई थी, और उसकी गुलाबी जाँघें चमक रही थीं।
“चल बहू… खुद ऊपर बैठ…”
नेहा शरमाते हुए मगर भूख से काँपते हुए धीरे-धीरे खुद को उस पर उतारने लगी।
“आह्ह्ह्ह… ससुर जी… ओह्ह्ह्ह…”
उसके होंठ खुद-ब-खुद कांप रहे थे।
💥 डर्टी टॉक और आवाज़ें
आरव और कविता की आवाज़ें compartment में गूँज रही थीं —
“आह्ह… ओह्ह्ह… और गहरा… जोर से… मारो…”
राघव और नेहा आमने-सामने lip-to-lip चिपके थे, और बीच-बीच में नेहा हाँफते हुए बोल रही थी —
“आप… आप तो मुझे पागल कर देंगे… आह्ह्ह…”
राघव उसकी कमर कस कर दबाता और दाँतों से उसकी गर्दन चूमता —
“आज तू मेरी है बहू… पूरी रात…”
🚆 compartment की लाइट झूल रही थी, बाहर तूफ़ान था, और अंदर चार जिस्म एक-दूसरे में बेकाबू होकर उलझ चुके थे।
💦 आखिरी धक्का
आरव ने कविता को कसकर पकड़ते हुए आखिरी तेज़ धक्का मारा —
“आह्ह्ह्ह… निकल रहा हूँ…”
कविता चिल्लाई —
“हाँ… अंदर… छोड़ दो सब… आह्ह्ह्ह…”
उधर राघव ने नेहा को कमर से जकड़ कर जोर से ऊपर उठाया और फिर गहराई तक धकेल दिया।
नेहा चिल्लाई —
“ओह्ह्ह… ससुर जी… मैं टूट रही हूँ…”
और अगले ही पल compartment कराहों, सिसकारियों और चरमसुख की आवाज़ों से भर गया।
🔥 रात की गर्माहट थमी नहीं… बल्कि अब रिश्तों की प्यास और गहरी हो चुकी थी।
चारों थके-हारे पसीने में भीगे बिस्तर पर ढेर थे… मगर आँखों में अभी भी वही भूख जल रही थी।
👉 और यहीं से अगली सुबह एक और खतरनाक मोड़ आने वाला था — जहाँ जुड़वाँ रिश्ते बदलकर नई हदें पार करेंगे…
🌄 अगली सुबह की खामोशी और फिर से भड़की आग
सवेरे ट्रेन किसी छोटे स्टेशन पर रुकी। बाहर ठंडी हवा थी, मगर डिब्बे के अंदर अब भी पिछली रात की गरमाहट की खुशबू तैर रही थी। बिस्तर पर बिखरे कपड़े, पसीने की नमी और चारों के थके जिस्म… सब कुछ उस पागलपन की गवाही दे रहे थे।
कविता ने धीरे से आँखें खोलीं। उसके गाल अब भी लाल थे, बाल उलझे हुए और होंठ सूजे हुए। उसने बगल में सोए आरव को देखा। आरव ने नींद में भी उसका हाथ कसकर पकड़ा हुआ था।
उसके मन में अपराधबोध की एक लहर उठी — “मैंने अपने ही पति की मौजूदगी में…” मगर उसी पल उसकी जांघों के बीच हल्की-सी सिहरन ने उसे याद दिला दिया कि वो सुख कैसा था।
☕ वहीं नेहा उठकर चुपचाप पानी पीने लगी। राघव उसकी ओर देख रहा था। उसकी आँखों में अब भी वही मर्दाना भूख थी।
नेहा ने फुसफुसाते हुए कहा —
“ये सब… नहीं होना चाहिए था…”
राघव मुस्कराया और पास खींचकर बोला —
“मगर बहू… तेरा जिस्म अब झूठ नहीं बोलेगा।”
नेहा काँप गई, उसकी आँखों से आँसू भी थे और होठों पर हल्की मुस्कान भी।
🚆 ट्रेन ने फिर से रफ्तार पकड़ी। डिब्बा हल्के-हल्के झूम रहा था।
आरव ने कविता को पीछे से कसकर पकड़ लिया। उसकी साँसें गरम थीं।
“पता है… रात भर तेरी चूत का स्वाद मेरे होंठों पे अटका रहा…”
कविता लजा कर बोली —
“चुप रहो… कोई सुन लेगा…”
मगर उसका जिस्म खुद ही पीछे झुक कर आरव की गोद में सिमट गया।
🔥 दूसरा राउंड – सुबह का नशा
राघव ने नेहा को धीरे-धीरे चूमना शुरू किया। ये चुम्बन पिछली रात जैसा जंगली नहीं था, बल्कि मीठा और खतरनाक था।
नेहा धीरे-धीरे पिघलने लगी। उसके हाथ खुद-ब-खुद राघव की छाती पर फिरने लगे।
“बस आखिरी बार…” उसने धीमे से कहा।
राघव हँस पड़ा —
“हर बार यही कहेगी बहू… और हर बार तू खुद मुझ पर चढ़ आएगी।”
नेहा की साँसें तेज़ हो गईं। वो फिर से उसके ऊपर झुक गई और अपने होंठ उसके होंठों पर रख दिए।
💦 इस बार चारों ने और भी पागलपन के साथ शुरुआत की।
- कविता और आरव खिड़की के पास खड़े होकर, पर्दे हटा कर, आधे खुले नज़ारे के बीच…
- राघव और नेहा बिस्तर पर, सुबह की धूप में चमकते पसीनों के साथ…
आवाज़ें फिर से गूंज उठीं —
“आह्ह्ह… ओह्ह्ह… जोर से… और…”
“हाँ… यहीं… आह्ह्ह…”
🌙 सुबह की खामोशी एक बार फिर कराहों और जिस्मों की टकराहट में डूब गई।
मगर इस बार एक और नया ट्विस्ट दरवाजे पर खड़ा था —
👉 अगले स्टेशन पर, कोई जान-पहचान वाला रिश्तेदार उसी डिब्बे में चढ़ने वाला था…