🚆 हनीमून ट्रेन का राज़ – Part 3
कविता बिस्तर पर हाँफती हुई पड़ी थी, उसका आँचल, ब्लाउज़ सब बिखर चुका था।
उसके आँसू और पसीना उसके चेहरे पर मिल गए थे।
विक्रांत ने हँसते हुए उसके गाल पर हल्की थपकी दी –
“शाबाश… तूने मज़ा दिया।”
🚆 ट्रेन फिर झटके से हिली और विक्रांत की आँखें अब धीरे-धीरे नेहा पर टिक गईं।
नेहा दीवार से सटी काँप रही थी, उसकी चुनरी आधी उतर चुकी थी, आँखों से आँसू बह रहे थे।
आरव ने ज़ोर से चीख़ा –
“साले! अगर नेहा को हाथ भी लगाया ना… तेरी जान ले लूँगा!”
विक्रांत ने उसकी तरफ देखा और मुस्कुराया –
“जान तो तेरी मैं ले लूँगा… लेकिन पहले तेरी बीवी का स्वाद चखूँगा।”
🔥 विक्रांत उठकर धीरे-धीरे नेहा के पास बढ़ा।
उसके भारी कदमों की आवाज़ compartment में गूंज रही थी।
नेहा ने सिसकते हुए अपनी चुनरी सीने से चिपका ली, लेकिन उसका पूरा बदन काँप रहा था।
विक्रांत उसके बिल्कुल सामने आकर झुका और उसके आँसू को उँगली से छुआ।
“इतनी कोमल… इतनी नाज़ुक… औरत नहीं, जैसे कोई नयी खिली कली।”
नेहा ने काँपती आवाज़ में कहा –
“प्लीज़… मुझे मत छूना… मैं तेरी औरत नहीं हूँ।”
विक्रांत हँसा –
“अब तू सबकी औरत है… और सबसे पहले मेरी।”
🚆 उसने झटके से उसकी चुनरी खींच ली।
नेहा ने चीख़ मार दी –
“आह्ह्ह!”
आरव रस्सियों में झटपटा रहा था, राघव अपनी मुट्ठियाँ भींचे ज़मीन पर गुस्से से देख रहा था,
और कविता आँसुओं में डूबी, असहाय होकर ये सब देख रही थी।
विक्रांत ने नेहा की ठोड़ी उठाकर उसके काँपते होंठों पर अपनी गरम साँसें छोड़ीं।
“आज बहू… तेरी चीख़ें इस ट्रेन की सबसे बड़ी धुन होंगी।”
🔥 उसने अपने दोनों हाथों से नेहा की कमर पकड़कर उसे अपनी ओर खींच लिया।
नेहा उसके सीने से टकराई और उसकी सुडौल छाती उभर आई।
उसने छटपटाते हुए पुकारा –
“नहीं… छोड़ो मुझे… प्लीज़!”
लेकिन विक्रांत की आँखों में अब सिर्फ़ भूख थी।
उसकी उँगलियाँ धीरे-धीरे नेहा के कपड़ों में सरकने लगीं।
🔥 Hook for Part 12:
अब compartment में नेहा की चीख़ें गूँजने वाली हैं।
क्या वो विक्रांत से बच पाएगी या उसका जिस्म भी शिकार बन जाएगा?
🌑 Part 12 – बहू पर पहला हमला
🚆 ट्रेन की रफ़्तार बढ़ रही थी, खिड़कियों पर बारिश की बूँदें और ज़ोर से पड़ने लगीं।
अंदर compartment में सन्नाटा और नेहा की दबी चीख़ें…
नेहा रस्सियों में बँधे आरव की ओर देख रही थी –
“बचाओ मुझे… आरव!”
लेकिन आरव बेतहाशा झटपटा रहा था, आँखों में आँसू और गुस्सा।
🔥 विक्रांत ने झटके से नेहा की कमर पकड़ी और उसे अपनी गोद में खींच लिया।
उसकी साड़ी एकदम सरक गई, और सफ़ेद जाँघें उसके सामने चमक उठीं।
विक्रांत ने गुर्राकर कहा –
“ये गोरे-गोरे पैर… इन पर पहला हक़ मेरा है।”
उसने अपनी हथेलियों से उसकी जाँघें दबोच लीं।
“आह्ह्ह… छोड़ो… मत करो…” नेहा तड़प रही थी।
💥 झटके से विक्रांत ने उसका ब्लाउज़ पकड़कर फाड़ दिया।
कपड़ा चटक कर टूटा और उसके उभरे हुए वक्ष उघड़ आए।
कविता ने मुँह पर हाथ रख लिया, उसकी आँखों से आँसू और तेज़ बहने लगे।
विक्रांत ने नेहा के सीने को पकड़कर मुँह में दबोच लिया –
“म्म्म्म… ऐसा दूधिया जिस्म… आज तक नहीं देखा।”
नेहा ने पूरी ताक़त से धक्का देने की कोशिश की, लेकिन उसका बदन विक्रांत की गिरफ्त में कैद था।
🔥 उसकी कराहट और विक्रांत की गुर्राहट compartment में गूंज रही थी।
आरव चीख़ रहा था –
“साले कुत्ते! छोड़ मेरी बीवी को… तेरी जान ले लूँगा मैं!”
विक्रांत ने हँसकर जवाब दिया –
“पहले तेरी बहू को चोद लूँ… फिर तू मुझे जो चाहे कर लेना।”
🚆 ट्रेन एकदम झटके से हिली, और उसी झटके में विक्रांत ने नेहा को बिस्तर पर गिरा दिया।
उसके ऊपर चढ़ते ही उसने उसकी चूड़ियाँ तोड़ दीं, काँच की खनक हवा में गूँज उठी।
नेहा रोते हुए गिड़गिड़ाई –
“भगवान के लिए… मुझे मत नोचो… मैं बहू हूँ…”
🔥 विक्रांत ने उसके कान में गरम साँस भरते हुए कहा –
“आज बहू नहीं… सिर्फ़ औरत है तू… और मैं तेरा मालिक।”
उसने उसकी दोनों कलाई पकड़कर ऊपर दबा दीं, और अपने होठों से उसकी गर्दन चाटने लगा।
नेहा काँप उठी, उसकी चीख़ compartment की दीवारों से टकराई।
👉 Hook for Part 13:
अब विक्रांत ने नेहा को पूरी तरह बिस्तर पर जकड़ लिया है।
अगले पल उसके जिस्म पर पहली बार उसका असली हमला होने वाला है।
🌑 Part 13 – बहू का चीरता हुआ पहला वार
🚆 ट्रेन तेज़ रफ़्तार से भाग रही थी। डिब्बे के हिलने के साथ compartment के अंदर नेहा का बदन विक्रांत के नीचे दबा हुआ तड़प रहा था।
नेहा रोते हुए चीख़ी –
“नहीं… छोड़ दो… मैं बहू हूँ तुम्हारी!”
🔥 विक्रांत ने उसके बाल मुट्ठी में भरकर झटका और गुर्राया –
“बहू नहीं… माल है तू! और ये माल आज मेरा है।”
उसने झटके से नेहा की साड़ी पूरी तरह खींचकर नीचे गिरा दी।
उसका दूधिया नंगा जिस्म बिस्तर पर काँप रहा था।
आरव रस्सियों में बँधा तड़पकर चिल्ला रहा था –
“हरामी! मेरी बीवी को मत छू… तेरी जान ले लूँगा मैं!”
लेकिन विक्रांत ने उसकी परवाह नहीं की।
उसने नेहा की टाँगें चौड़ी करके बिस्तर पर दबा दीं।
👀 उसका उभार नेहा की भीगी दरार पर कसकर रगड़ खा गया।
“आह्ह्ह्ह… नहीं… मत करो!” नेहा की चीख़ गूँजी।
💥 अगले ही झटके में विक्रांत ने पूरी ताक़त से धक्का मारा।
उसका लोहा नेहा के भीतर गहराई तक धँस गया।
“आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह… ओह्ह्ह माँ!” नेहा दर्द से तड़पकर चीख़ उठी।
उसकी आँखों से आँसू बहने लगे, होंठ काँप रहे थे।
🔥 विक्रांत और जोर से धकेलने लगा, उसके बदन से पसीना टपक रहा था।
“म्म्म्म्म… तंग बहू… ऐसा मज़ा ज़िन्दगी में नहीं लिया।”
नेहा का जिस्म दर्द और वासना के बीच काँप रहा था।
वो धकेलते हुए चीख़ रही थी –
“बस्स्स… फाड़ दिया… आह्ह्ह्ह… मत कर…”
लेकिन ट्रेन के हर झटके के साथ विक्रांत की चोटें और गहरी होती जा रही थीं।
उसके कराहते हुए शब्द –
“आह्ह्ह बहू… आज तूने मुझे मर्द बना दिया।”
🩸 नेहा की आँखें भर आईं।
उसकी चीख़ें compartment की पतली दीवारों से टकराकर बाहर तक जा रही थीं।
अब जबकि विक्रांत ने बहू को चीरकर अपना बना लिया है, अगला कदम और भी गंदा है –
वो अब नेहा को पलटकर पशु जैसी पोज़िशन में तोड़ना चाहता है।
🌑 बहू का कुतिया वाला हाल
🚆 ट्रेन की पटरियों पर गड़गड़ाहट थी…
नेहा पसीने और आँसुओं में भीगी, बिस्तर पर अधमरी सी पड़ी थी।
विक्रांत ने उसकी कमर पकड़कर झटका दिया और गुर्राया –
“बहू! अब मर्द की तरह चूसूँगा तुझे… चारों हाथ-पैरों पर झुक जा।”
नेहा रोते हुए सिर हिलाने लगी –
“नहीं… प्लीज़… और मत करो… फाड़ दिया है मुझे…”
💥 विक्रांत ने उसकी जुल्फें पकड़कर उसे ज़बरदस्ती घुटनों पर खड़ा कर दिया।
नेहा अब डॉग-स्टाइल में काँप रही थी – उसकी सफ़ेद जाँघें और भरी हुई गांड हवा में थी।
🔥 विक्रांत ने दोनों हथेलियों से उसकी गांड को दबाया और बीच की दरार पर अपना गर्म डंडा सटा दिया।
उसने हाँफते हुए कहा –
“वाह बहू… यही है असली मज़ा… अब तू कुतिया बनेगी मेरी।”
🚆 अगले ही झटके में उसने पूरी ताक़त से धक्का मारा।
“आआआआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह!” नेहा की चीख़ compartment में गूँज उठी।
उसकी छातियाँ झूलते हुए बिस्तर पर टकरा रही थीं।
वो बार-बार हाथों से चादर दबाकर कराह रही थी –
“छोड़ दो… छोड़ दो… मम्म्म… फट गई… आह्ह्ह…”
लेकिन विक्रांत और पागल हो गया।
उसने दोनों हाथों से नेहा की कमर पकड़ ली और धक्कों की बरसात कर दी।
हर धक्का ट्रेन के झटकों से मिलकर compartment को हिला रहा था।
💦 “चपाक-चपाक-चपाक” की आवाज़ कमरे में गूँज रही थी।
विक्रांत गंदी हँसी हँसते हुए बोला –
“वाह बहू… तेरी गांड तो कमाल की है… और कसके लगा…”
नेहा की आँखों से आँसू झर रहे थे।
लेकिन उसकी कराहट में अब दर्द के साथ हल्की वासना भी घुल गई थी –
“म्म्म्म… आह्ह्ह… मत करो… प्लीज़…”
🔥 विक्रांत ने और गहराई तक धँसाते हुए गुर्राकर कहा –
“अब तू मेरी है बहू… आज तुझे इतना चोदूँगा कि तेरे शौहर का चेहरा तक भूल जाएगी।”
उसने नेहा की पीठ पर झुककर उसके कान में गरम साँसें छोड़ीं –
“बोल बहू… मज़ा आ रहा है ना?”
👉 Hook for Part 15:
अब विक्रांत ने डॉग-स्टाइल में तोड़ दिया, लेकिन उसका अगला जुनून और भी गंदा है –
वो नेहा के मुँह में घुसकर उसकी आख़िरी शर्म भी तोड़ना चाहता है।
🌙 मुँह की आग और नए कदमों की आहट
ट्रेन ज़ोर से झटका खाकर अँधेरी सुरंग में घुसी। डिब्बे के अन्दर सिर्फ़ मंद पीली रोशनी टिमटिमा रही थी। बाहर का शोर और भीतर की कराहटें मिलकर पागल कर देने वाला माहौल बना रहे थे।
नेहा अभी भी चारों हाथ-पैरों के बल बिस्तर पर झुकी थी। उसकी चूड़ियाँ काँप रही थीं, और उसका गदराया हुआ पिछवाड़ा पसीने से चमक रहा था।
विक्रांत ने कमर पर कसकर पकड़ बनाई और फिर अचानक पीछे से लंड निकालकर गरम–गरम लार से लथपथ करते हुए बोला –
“अब देखना बहू… तेरे मुँह से क्या-क्या निकलवाता हूँ।”
नेहा पलकें झुकाकर हाँफती हुई बोली –
“आह… विक्रांत जी… और मत तड़पाइए… पूरा डाल दो मेरे मुँह में…”
🚆 झटके के साथ ट्रेन हिली और उसी पल विक्रांत ने उसका सिर दोनों हाथों से दबोचकर अपना मोटा लंड उसके होंठों पर रगड़ दिया।
नेहा ने हल्की सी झिझक के बाद होंठ खोले और पूरा लंड अपने गले तक ले गई।
“हुह्ह… चूस… गहरी ले… ओह्ह बहू…” – विक्रांत की भारी आवाज़ compartment में गूँज उठी।
नेहा घुटते-घुटते भी लार टपकाती रही, उसकी आँखें ऊपर उठी हुई थीं। होंठ कसकर भींचे और जीभ से गोल-गोल घुमाते हुए वो बेकाबू हो गई थी।
विक्रांत ने बाल पकड़कर पूरा लंड बार-बार उसके गले में धँसाया –
“हाँsss… ऐसे… गटक ले साली… तेरी शादी की पहली रात का मज़ा मैं दूँगा…”
नेहा कराह उठी, उसकी आँखों से आँसू बह निकले लेकिन होंठ और तेज़ी से चूसते रहे।
उसके गले से गड़गड़ाहट की आवाज़ें आ रही थीं… ट्रेन की सीटी और उस गंदी चुस्की की आवाज़ मिलकर compartment को और भड़का रही थीं।
🔥 तभी दरवाज़े पर हल्की खट की आवाज़ हुई।
नेहा ने सिर मोड़ने की कोशिश की, लेकिन विक्रांत ने पकड़ और कस ली –
“छोड़ मत… चाटती रह…”
दरवाज़ा धीरे से खुला… और बाहर से हल्की नीली रोशनी अन्दर गिरी।
छाँव में खड़े दो चेहरे दिखे – आरव और कविता।
आरव की आँखें चौड़ी थीं, होंठ काँप रहे थे। उसने पहली बार अपनी बीवी को किसी और मर्द के मोटे लंड को गले तक निगलते देखा था।
कविता का सीना तेज़ी से उठ–गिर रहा था, उसकी नज़रें नेहा की चूड़ियों और उघड़े हुए स्तनों पर जमी थीं।
वो दोनों कुछ पल वहीं जमे रहे… और अन्दर से आती कराहटें उनके जिस्म में भी बिजली-सी दौड़ा रही थीं।
🌙 ताले टूटते जज़्बात
दरवाज़े पर खड़े आरव और कविता की सांसें थम-सी गई थीं।
अन्दर नेहा गिड़गिड़ाकर विक्रांत का लंड चूस रही थी, उसके गले से गड़गड़ाहट की आवाज़ें आ रही थीं।
पलभर को आरव का दिल डूबा, पर अगले ही क्षण उसके भीतर की दबी भूख ने आँखों को चौंधिया दिया।
नेहा ने जब अचानक दरवाज़े की तरफ़ देखा तो उसकी नज़र पति और सास पर पड़ी।
उसकी आँखें एक पल के लिए चौड़ी हो गईं… होंठों से लार टपक रही थी, और मुँह अब भी लंड में भरा हुआ था।
वो चाहती तो हट सकती थी, मगर उसके होंठ और कस गए… जैसे पति को दिखाना चाह रही हो कि “देखो, मैं कितनी गहराई तक ले सकती हूँ।”
🚆 ट्रेन ने फिर ज़ोर का झटका मारा और उसी पल नेहा ने पूरा लंड गले में गटकते हुए कराह भरी।
विक्रांत हँसते हुए बोला –
“वाह बहू… तू तो और भी बिगड़ रही है… तेरे पति को भी दिखा दे असली हुनर…”
आरव का गला सूख गया।
उसने देखा, उसकी बीवी आँखों में अजीब-सी चुनौती लेकर उसके सामने ही किसी और के लंड पर जान दे रही थी।
उसके भीतर जलन भी उठी और भूख भी।
कविता के होंठ काँप रहे थे। उसकी छाती उठ–गिर रही थी।
उसने धीरे से आरव की कलाई पकड़ी और फुसफुसाई –
“रुक मत… पास चल…”
दोनों धीरे-धीरे डिब्बे के अन्दर आ गए।
अब चारों एक ही कमरे-जैसे compartment में थे।
हवा भारी हो गई थी, चारों तरफ़ पसीने, गंध और कराहटों का तूफ़ान था।
नेहा ने जानबूझकर पति की आँखों में देखते हुए लंड मुँह से निकाला। उसके होंठों से लार की लड़ी झूल रही थी।
वो हाँफते हुए बोली –
“आओ ना आरव… आज देख लो तुम्हारी बीवी कितनी भूखी है…”
🔥 यह सुनकर आरव के कदम खुद-ब-खुद बढ़े।
वो नेहा की तरफ़ झुका, मगर कविता ने उसका हाथ पकड़कर अपनी तरफ़ खींच लिया।
कविता की आँखों में भी आग जल रही थी। उसने धीमे स्वर में कहा –
“पहले मुझे छू… मैं भी तड़प रही हूँ…”
आरव चौंका।
पहली बार अपनी माँ जैसी सास की आँखों में इतनी गहरी वासना देख रहा था।
उसकी साँस अटक गई… मगर उसके हाथ खुद-ब-खुद कविता की साड़ी के पल्लू में घुस गए।
विक्रांत मुस्कराया और बोला –
“वाह… आज तो पूरा परिवार साथ है… अब असली रंग जमेगा।”
नेहा ने पति को ललचाई नज़रों से देखा और फिर विक्रांत की गोद में धँसकर खुद को और नंगा कर दिया।
उसके होंठों से सिसकारियाँ निकल रही थीं।
🚨 माहौल अब ऐसा था कि चारों शरीर एक-दूसरे की ओर खिंच रहे थे।
सीमाएँ टूट रही थीं, और हर पल अगली सीमा पार करने का इशारा कर रहा था।
🌙 पति और सास का पहला कदम
दब्बे के अंदर माहौल आग सा भर गया था।
नेहा अभी भी विक्रांत के नीचे हाँफ रही थी, उसका पिछवाड़ा पसीने से चमक रहा था।
आरव ने काँपती हाथों से अपनी पत्नी का कमर पकड़ा।
उसकी आँखों में जलन और इच्छा का अजीब मिश्रण था।
“नेहा… अब मैं भी…” उसने हँसते हुए फुसफुसाया।
कविता ने आरव की कलाई पकड़ी और धीरे-धीरे खुद को उसकी ओर झुकाया।
“आरव… मैं भी तड़प रही हूँ… हमें भी इसमें शामिल होना चाहिए।”
विक्रांत ने उनकी हरकतें देखी और गुर्राया –
“वाह… वाह… अब सबको एक ही कमरे में मिलाकर असली मज़ा होगा।”
🔥 आरव ने धीरे-धीरे नेहा के ऊपर हाथ रखा।
नेहा ने एक नजर विक्रांत पर डाली और फिर पति की ओर झुकी।
विक्रांत ने हँसकर कहा –
“जितना चाहो प्यार करो… बस मेरी गोद की जगह मत भूलना।”
कविता अब पूरी तरह पागल हो चुकी थी।
उसने अपने पति की कमर कसकर पकड़ी और धीरे-धीरे अपने स्तनों को उसके सीने से रगड़ना शुरू किया।
नेहा विक्रांत के नीचे काँपते हुए हाँफ रही थी।
उसने उँगलियाँ आरव के बालों में फँसाईं और हिचकिचाते हुए कहा –
“आरव… मुझे छोड़ो मत… मैं सबको देख रही हूँ…”
🚆 ट्रेन का झटका आया और compartment में चारों के शरीर एक-दूसरे के ऊपर–नीचे होने लगे।
विक्रांत ने नेहा की जाँघें और पकड़ लीं, आरव ने उसके कंधे दबाए, कविता ने आरव की कमर घेरा।
🔥 अब चारों के शरीर एक rhythm में झूलने लगे।
नेहा–विक्रांत की तेज़ी, आरव–कविता की धीमी मगर गहरी गति… सब मिलकर compartment को एक अजीब, वासना-भरे तूफ़ान में बदल रहे थे।
नेहा की चीख़ें, कविता के हल्की कराहें, और विक्रांत की गुर्राहटें…
आरव भी अपनी पत्नी में डूबकर खुद को रोक नहीं पा रहा था।
💦 “आह्ह… हाँ… और जोर… प्लीज़…” नेहा ने चीख़ते हुए कहा।
विक्रांत ने हँसते हुए उसका पिछवाड़ा कसकर दबाया।
कविता ने आरव की छाती पर सर टिकाकर हल्की-सी कराह भरी।
आरव ने उसे कसकर पकड़ लिया और धीरे-धीरे गहराई में उतर गया।
🔥 Hook for Part 18:
अब सब चारों धीरे-धीरे एक full-on group sex में उतरने वाले हैं।
अगले पार्ट में – positions बदलेंगी, penetration कई जगहों पर होगा, और climax के साथ secret happy ending की ओर story बढ़ेगी।
🌙 group sex और गुप्त खुशी
🚆 ट्रेन का डिब्बा पूरी तरह गर्म और धुंधला हो गया था।
चारों के बदन पसीने और हवस से चिपक रहे थे।
विक्रांत ने नेहा को अपनी गोद से पकड़ा और डॉग-स्टाइल में पीछे से penetration जारी रखा।
नेहा की चीख़ें compartment में गूँज रही थीं।
आरव ने अपनी पत्नी के स्तनों और कमर को कसकर पकड़ लिया।
कविता ने धीरे-धीरे पति को पीछे से घेरा और अपने होठों से उसके कान चाटने लगी।
🔥 अब positions बदलने लगीं।
- विक्रांत ने नेहा की जाँघें फैलाकर तेजी बढ़ाई।
- आरव ने अपने हाथों से नेहा की छाती को दबाया।
- कविता ने विक्रांत के कंधे को पकड़ा और अपनी सांसें तेज़ कीं।
चारों शरीर एक rhythm में झूल रहे थे।
कराहटें, चीख़ें, और गर्म साँसें एक-दूसरे में घुल रही थीं।
💦 climax की ओर बढ़ते हुए:
- नेहा ने विक्रांत के लंड पर आख़िरी कराह छोड़ी।
- कविता और आरव एक-दूसरे में डूब गए।
- विक्रांत ने जोर देकर अपने आप को छोड़ा।
🚨 compartment में एक साथ चारों के orgasms गूँज उठे।
नेहा ने अपनी आँखें बंद कीं, होंठ मुस्कराए और धीरे से कहा –
“आज… सब कुछ… बस… बस…”
आरव ने उसकी पीठ थपथपाई।
कविता ने पति के गालों पर हल्की मुस्कान दी।
विक्रांत ने हँसते हुए कहा –
“वाह… आज का खेल मज़ेदार रहा… लेकिन ये हमारी secret खुशी रहेगी।”
🌅 सुबह हुई, ट्रेन ने स्टेशन पर रोक ली।
चारों ने धीरे-धीरे कपड़े ठीक किए, चेहरे पर हल्की लालिमा और आँखों में चुपचाप मिली वासना की चमक थी।
नेहा ने पति की ओर देखा और फुसफुसाई –
“कल… फिर से हो सकता है?”
आरव ने मुस्कराकर सिर हिलाया।
कविता ने भी आँखें चमकाईं।
विक्रांत ने हँसते हुए compartment छोड़ते हुए कहा –
“ये रात हमारे दिल में हमेशा रहेगी… और शायद अगली रात भी…”
🔥 Secret happy ending:
- चारों के रिश्ते अब एक taboo-भरी, छुपी हुई वासना में बँध गए थे।
- कोई गुस्सा नहीं, कोई फूट नहीं… बस एक साथ मिली “गुप्त खुशी” और future के लिए craving।