🔥 “गुप्तआग – तालाब की रात का forbidden खेल”

Gaon ke talab ka kaand-Part 3

🌙 Short Teaser

तालाब की उस रात के बाद से गुड़िया की आँखों में एक नई चमक थी… एक ऐसी चमक जिसमें शर्म भी थी और छुपी हुई आग भी।
रघु से नज़रें चुराकर उसका मन बार-बार शंभू काका की तरफ खिंचने लगा।


👤 Character Detail

  • गुड़िया (21 साल): गोरी, पतली काया, रस से भरी छातियाँ, चौड़ी कमर और भीगी आँखें। मन में छुपा डर और ललक दोनों ही साथ थे।
  • शंभू काका (52 साल): झुर्रियों वाला चेहरा, तजुर्बे से भरी आँखें, दबा हुआ लेकिन गहरा हुआ कामुक भूख
  • रघु (25 साल): ताक़तवर नौजवान, गुड़िया का पहला आकर्षण, पर अनजाने में ही गुड़िया की नज़र अब उससे हटकर और forbidden तरफ मुड़ रही थी।

🌾 Plot / Setting

गाँव की कच्ची गलियाँ, रात का सन्नाटा, और खेतों के किनारे बने छोटे-छोटे झोंपड़े। तालाब की घटना के बाद अब कहानी बढ़ रही थी गाँव की उसी गुप्त अँधेरी गलियों और छुपे कोनों में…
गुड़िया का दिल तेज़ धड़कने लगता जब भी शंभू काका पास से गुज़रते।


🔥 Foreplay / Build-up

रात का समय था। गुड़िया अपने आँगन में खटिया पर लेटी हुई थी, पर नींद आँखों से कोसों दूर। तालाब के किनारे शंभू काका की उँगलियों की वो छुअन अभी भी उसकी जाँघों में गुदगुदी कर रही थी।

वो खुद से बुदबुदाई—
“हे भगवान… मैं क्यों इतना सोच रही हूँ काका के बारे में…”

उसी वक़्त पीछे से पैरों की आहट सुनाई दी। उसने चौंककर सिर उठाया—काला धोती-बनियान पहने शंभू काका सामने खड़े थे। उनकी आँखों में वही पुरानी शरारत थी।

“नींद नहीं आ रही गुड़िया बिटिया?” काका ने दबे स्वर में कहा।
गुड़िया की साँसें फुलने लगीं। उसने आँचल कसकर खींचा और धीमे स्वर में बोली—
“काका… आप यहाँ… इस वक़्त?”

काका पास आकर खटिया की बेंत पकड़ते हुए झुक गए। उनका मुँह इतना पास था कि गुड़िया को उनकी साँस की गरमाहट महसूस हुई।
“तेरे चेहरे की बेचैनी देख के आ गया… मन में कुछ है, जो जुबान पे नहीं आ रहा न?”

गुड़िया का दिल धक-धक कर रहा था। वो उठकर बैठी और आँचल सीने पर कस लिया।
“आप गलत सोच रहे हैं काका…”

काका मुस्कुराए, “गलत? तो आँखों में ये भीगी चिंगारी किसलिए है, गुड़िया?”

उनकी उँगलियाँ धीरे से खटिया की रस्सियों पर फिसल रही थीं, और गुड़िया की आँखें अनजाने में ही उनकी हथेलियों पर टिक गईं। उस स्पर्श से उसके पेट में अजीब-सी गुदगुदी उठी।

गुड़िया ने होंठ दबाए और कहा—
“अगर कोई देख लेगा तो…”

काका ने कान के पास झुकते हुए फुसफुसाया—
“देखेगा तभी तो मज़ा है… गुप्त आग छुपाने से और जलती है।”

गुड़िया काँप उठी। उसका हाथ अनजाने में ही खटिया के पायों को कसकर पकड़ लिया। उनकी नज़रों का बोझ सहना मुश्किल हो रहा था।

काका की उँगली धीरे से उसके घुटनों को छू गई।
गुड़िया सिहर उठी—
“काका… मत…!”

लेकिन उसके स्वर में ना से ज़्यादा एक छुपी हुई चाहत थी।

काका की उँगलियाँ घुटनों से ऊपर सरकने लगीं। गुड़िया की साँसें तेज़ हो गईं। उसका आँचल ढीला होकर छाती से फिसल गया। चाँदनी में उसके उभरे हुए स्तनों की झलक साफ़ नज़र आ रही थी।

गुड़िया ने जल्दी से आँचल सँभाला—
“आप पागल हो गए हैं…”

काका हँस दिए, और धीमे से बोले—
“पागल तो तूने बना दिया है मुझे…”


💔 Twist / Emotional

गुड़िया की आँखों में डर और ललक दोनों थे। वो जानती थी कि ये गलत है, पर उसी गलत में छुपा रोमांच उसे पागल कर रहा था।
रघु का चेहरा अचानक उसकी आँखों के सामने आ गया… लेकिन उसी पल काका की उँगली उसकी जाँघ पर कस गई।

गुड़िया की देह काँप उठी…
उसका दिल कह रहा था “भाग जा”, लेकिन शरीर कह रहा था “रुक जा…”

गुड़िया की साँसें इतनी तेज़ चल रही थीं कि उसका सीना ऊपर-नीचे हो रहा था। आँचल बार-बार फिसल रहा था और काका की आँखें वहीं टिकी हुई थीं।

“काका… प्लीज़… कोई देख लेगा तो बदनाम हो जाऊँगी…” – गुड़िया ने काँपते स्वर में कहा।

काका ने उसकी ठुड्डी उँगली से ऊपर उठाई और धीमे से बोले –
“अरे पगली… रात का सन्नाटा है… सिर्फ़ तू, मैं और ये जलती हुई आग।”

गुड़िया की आँखें झुक गईं। उसके होंठ काँप रहे थे। काका ने अचानक हाथ बढ़ाकर उसका हथेली अपनी पकड़ में ले लिया। उसकी नरम हथेलियाँ काका के खुरदरे हाथों में जैसे सिसक उठीं।

गुड़िया के पूरे शरीर में करंट दौड़ गया। उसने हाथ छुड़ाने की कोशिश की लेकिन उतनी ही देर में काका की उँगलियाँ उसके बाँह से होते हुए कंधे तक पहुँच गईं।

गुड़िया सिहर उठी।
“काका… छोड़ दीजिए…”

काका मुस्कुराए और फुसफुसाए –
“तू चाहती तो नहीं कि छोड़ दूँ…”

उनकी आवाज़ में वो अनुभवी मर्दाना खिंचाव था, जिससे गुड़िया का दिल और तेज़ धड़कने लगा।


धीरे-धीरे काका ने उसकी पीठ पर हाथ रख दिया। गुड़िया की देह जैसे आग में झोंक दी गई हो। उसने गर्दन तिरछी कर ली, पर उसके कान के पास काका की गर्म साँसें उसकी कमज़ोरी बन रही थीं।

गुड़िया ने होंठ दबाए। अचानक काका ने उसकी पीठ पर हाथ फेरते-फेरते उसकी कमर थाम ली।
गुड़िया चीख सी निकली –
“काका…!”

पर उसके स्वर में विरोध कम और गहरी छुपी चाहत ज़्यादा थी।


काका ने उसके कान में धीरे से कहा –
“तेरे जिस्म की गर्मी मुझे पुकार रही है गुड़िया… अब ना मत कर।”

गुड़िया की आँखें नम हो गईं। उसकी साँसें जैसे उसके काबू से बाहर थीं।
उसका आँचल पूरी तरह से सरक चुका था और अब चाँदनी उसकी भरी हुई छातियों पर चमक रही थी।

गुड़िया ने जल्दी से दोनों हाथों से सीना ढक लिया, पर काका की आँखें और मुस्कान ने उसे और असहज कर दिया।

“इतनी शर्म…? और तालाब के उस दिन जो तूने मुझे छूने दिया था, वो क्या था?” – काका ने ताना मारा।

गुड़िया ने शर्म से आँखें बंद कर लीं। उसके मन में तालाब वाला पल घूम गया। उसका दिल मान रहा था कि वो फँस चुकी है।


काका ने धीरे से उसके हाथ हटाए और उसकी छातियों पर नजर गड़ा दी।
गुड़िया काँप उठी।
“काका… प्लीज़… मैं बर्बाद हो जाऊँगी…”

काका ने होंठों से उसके कान छूते हुए कहा –
“बर्बाद नहीं… बस गुलाम बन जाएगी तू मेरी आग की।”

गुड़िया का शरीर अब मानो ना और हाँ के बीच झूल रहा था। उसकी जाँघें काँप रही थीं, होंठ सूख गए थे।

काका की उँगलियाँ अब उसकी कमर से सरककर उसके पेट पर खेल रही थीं। गुड़िया ने आँखे कसकर बंद कर लीं।
उसकी देह जैसे खुद-ब-खुद आगे झुक रही थी।


💔 Twist / Emotional

गुड़िया की आँखों से हल्की नमी टपक पड़ी।
उसने धीमे स्वर में कहा –
“भगवान कसम… ये पाप है काका… पर मेरा दिल रुक नहीं रहा।”

काका ने मुस्कुराते हुए कहा –
“पाप में ही तो असली मज़ा है गुड़िया…”

उस पल गुड़िया की देह उसके काबू में आने लगी। उसका हाथ अब अनजाने में काका के सीने पर टिक चुका था।

अगली रात तालाब किनारे झोंपड़ी में सन्नाटा पसरा हुआ था। हवा में सीलन और घास की गंध थी। अंदर टिमटिमाती लालटेन की हल्की रोशनी में गुड़िया काँप रही थी।

शंभू काका ने दरवाज़ा भीतर से बंद किया और गहरी नज़रों से उसे देखा।
“आज तो तुझे पूरी तरह अपना बना ही लूँगा…”

गुड़िया का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। उसका गीला आँचल सीने से कसकर चिपका था, लेकिन काका की आँखें उसकी भरी हुई चूचियों पर ही अटकी थीं।

गुड़िया पीछे हटते हुए बोली –
“काका… मत कीजिए… ये गलत है…”

काका हँस पड़े –
“गलत वही होता है जो दिल न चाहे… तेरी आँखें और ये काँपता जिस्म बता रहा है कि तू खुद इस पाप को चाहती है।”


काका ने झपटकर उसका हाथ पकड़ लिया और उसे खींचकर अपने सीने से सटा लिया।
गुड़िया की मुलायम छातियाँ उनके मजबूत सीने से दब गईं।
उसके होंठों से हल्की कराह निकली –
“म्म्म… काका…”

काका का हाथ धीरे-धीरे उसकी पीठ से सरकता हुआ कमर तक पहुँचा और फिर नीचे खिसकने लगा।
उनकी हथेली ने उसकी गोल मटोल गांड को कसकर थाम लिया।

गुड़िया हाँफ उठी।
“काका… प्लीज़… छोड़िए…”

काका ने उसके कान में गरम साँस छोड़ते हुए कहा –
“तू जितना कहेगी ‘छोड़’, मैं उतना ही कसूँगा…”


गुड़िया की टाँगें काँप रही थीं। उसने आँचल सँभालने की कोशिश की, लेकिन काका ने झटके से खींचकर उसका आँचल नीचे गिरा दिया।

अब उसकी सफेद ब्लाउज़ में से झाँकती हुई चूचियाँ साफ़ दिख रही थीं।
काका की आँखें लाल हो गईं।

उन्होंने झुककर मुँह सीधे उसकी छातियों पर रख दिया और दाँतों से उसके ब्लाउज़ के कपड़े को दबाने लगे।
गुड़िया का मुँह खुला का खुला रह गया –
“आsss… काका… मत…!”

काका की उँगलियाँ उसके ब्लाउज़ का हुक खोल रही थीं। जैसे ही हुक ढीले हुए, उसकी भरी हुई गोल चूचियाँ बाहर छलक पड़ीं।


काका ने एकदम से उसकी नरम गुलाबी चूची को होंठों में दबा लिया।
गुड़िया ने सिर पीछे झटका और कराह उठी –
“आह्ह्ह… ओह्ह्ह्ह…”

उसकी देह पिघलने लगी।
काका बारी-बारी से दोनों चूचियों को चूसते रहे, कभी जीभ से गुदगुदाते, कभी दाँतों से हल्का काटते।

गुड़िया की साँसें टूटने लगीं।
उसका हाथ अनजाने में काका के सर पर चला गया।
“काका… बस्स… मेरी जान निकल जाएगी…”

काका ने मुस्कुराते हुए कहा –
“अभी तो बस शुरुआत है गुड़िया… असली मज़ा तो तब है जब तेरा भीगा हुआ चूत मेरे लंड को महसूस करेगा…”

गुड़िया की आँखें चौड़ी हो गईं। शर्म और डर से उसकी देह काँप उठी।
लेकिन उसकी जाँघें अपने आप कस गईं… मन विरोध कर रहा था, पर जिस्म बेकाबू हो रहा था।


💔 Twist / Emotional

गुड़िया के होंठ काँपते हुए बुदबुदाए –
“अगर कोई जान गया तो… मेरा नाम मिट्टी में मिल जाएगा काका…”

काका ने उसके मुँह को अपनी हथेली से ढक दिया और गरजकर कहा –
“अब तू मेरी है… ये राज़ सिर्फ़ तू, मैं और ये तालाब जानेगा।”

गुड़िया की आँखों में आँसू आ गए, लेकिन उसी आँसू में छुपी भूख की चमक काका साफ़ देख चुके थे।

गुड़िया की छातियाँ अब पूरी तरह नंगी थीं, और काका की जीभ उनपर बेरहम होकर खेल रही थी।
कभी वो उसकी गुलाबी चूची को खींचते, कभी दाँतों से हल्का दबाकर छोड़ देते।

गुड़िया हाँफते हुए दोनों हाथों से उनका सिर दूर करने की कोशिश करती, पर हर बार उसका खुद का शरीर ही धोखा दे देता।
“आsss… काका… बस कीजिए… मेरी जान निकल जाएगी…”

काका ने होंठ उठाते हुए कहा –
“जान तो निकलनी ही चाहिए, गुड़िया… वरना लंड का मज़ा अधूरा रह जाएगा।”


धीरे-धीरे उन्होंने उसका पेट सहलाना शुरू किया।
उनकी उँगलियाँ उसकी नाभि के आसपास घूम रही थीं।
गुड़िया की साँसें इतनी तेज़ हो गईं कि उसका पूरा सीना ऊपर-नीचे हिल रहा था।

“काका… नीचे मत… प्लीज़…” – गुड़िया की आवाज़ काँप रही थी।

लेकिन काका का हाथ अब उसके घाघरे के अंदर सरक चुका था।
उनकी उँगलियाँ उसकी जाँघों पर फिसल रही थीं, और गर्मी से पसीना मिला हुआ अहसास उसकी देह को और गीला कर रहा था।

गुड़िया ने दोनों जाँघें कस लीं –
“ना… वहाँ मत छूना काका…”

काका ज़रा हँसते हुए बोले –
“यहीं तो आग सबसे ज़्यादा जल रही है, गुड़िया…”


काका ने उसके घाघरे को धीरे-धीरे ऊपर सरकाना शुरू किया।
जैसे-जैसे कपड़ा ऊपर जा रहा था, वैसे-वैसे गुड़िया की टाँगें काँप रही थीं।

आख़िरकार उसकी मुलायम जाँघें पूरी तरह नंगी हो गईं।
काका की आँखें लाल हो गईं।

उन्होंने हथेली रखकर उसकी गोल-मोल जाँघों को सहलाना शुरू किया।
गुड़िया के मुँह से धीमी कराह निकली –
“म्म्म… काका… ऐसा मत कीजिए…”

काका फुसफुसाए –
“तेरी भीगी चूत मुझे अभी से बुला रही है…”


गुड़िया ने शर्म से चेहरा घुमा लिया, लेकिन उसकी साँसें और तेज़ हो गईं।
काका की उँगलियाँ धीरे-धीरे उसकी जाँघों से सरककर उसकी भूरी झाड़ियों तक पहुँच गईं।

गुड़िया अचानक काँपकर चीख सी पड़ी –
“आsss… मत… काका…”

लेकिन उसका विरोध कमजोर था।
काका की उँगलियाँ उसकी झाड़ियों से होते हुए उसके भीगे चूत के दरवाज़े तक पहुँच चुकी थीं।


💔 Twist / Emotional

गुड़िया ने हाथ जोड़कर कहा –
“काका… मेरी इज़्ज़त मत लीजिए… मैं बर्बाद हो जाऊँगी…”

काका ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा –
“तेरी इज़्ज़त तेरी चूत में नहीं, तेरे दिल में है… और दिल तो तू पहले ही मेरे हवाले कर चुकी है।”

गुड़िया की आँखें नम हो गईं।
उसका शरीर काँप रहा था, लेकिन उसके होंठों से सिर्फ़ यही टूटा –
“हे भगवान… मुझे रोक लो… वरना मैं डूब जाऊँगी…”

ड़िया की जाँघें कसकर बंद थीं, लेकिन शंभू काका का दबाव और उसकी खुद की भीतर की भूख अब साथ नहीं निभा पा रही थी।

काका ने झुककर फुसफुसाया –
“जितना रोकने की कोशिश करेगी, उतना ही भीगेगी तू…”

उनकी उँगलियाँ उसकी भूरी झाड़ियों को दबाते हुए नीचे खिसक गईं और सीधा उसकी भीगी चूत की दरार पर आ टिकीं।

गुड़िया का पूरा जिस्म काँप उठा।
उसके होंठों से दबा हुआ कराह निकल पड़ा –
“म्म्म्म… ओsss…”

उसकी आँखें कसकर बंद थीं, हाथ खटिया की रस्सियों को ऐसे पकड़ रखा था जैसे खुद को रोक रही हो।


काका ने धीरे से उसकी चूत की दरार पर उँगली फेरी।
“आsss… काका… वहाँ मत… पाप है…”

लेकिन उसकी कराह साफ़ बता रही थी कि उसका जिस्म ना नहीं कह रहा।

काका मुस्कुराए –
“तेरी चूत तो भीगकर मुझे हाँ कह रही है गुड़िया…”

उन्होंने एक उँगली धीरे-धीरे उसके चूत के होंठों पर दबाई।
गुड़िया हिल उठी –
“आsss… मत… वहाँ जलन हो रही है…”

काका ने और गहराई में उँगली सरका दी।
गुड़िया का पूरा शरीर खिंच गया, उसकी कमर अपने आप ऊपर उठ गई।
“ओह्ह्ह्ह्ह्ह… काकाआआआ…”


काका अब उसकी चूत में हल्की-हल्की उँगली डालकर बाहर निकाल रहे थे।
भीगी हुई आवाज़ें झोंपड़ी में गूंज रही थीं।

गुड़िया की आँखें आधी खुलीं और आधी बंद थीं।
उसके होंठ काँपते हुए बुदबुदाए –
“हे भगवान… मैं बर्बाद हो जाऊँगी…”

काका ने दूसरी उँगली भी अंदर डाल दी।
गुड़िया का मुँह खुल गया और ज़ोर की सिसकारी निकली –
“आsssssss… ओह्ह्ह्ह… मत… और गहरा मत कीजिए…”

लेकिन उसका जिस्म काका की उँगलियों को और कसकर पकड़ रहा था।


गुड़िया की साँसें टूटने लगीं।
उसकी छातियाँ ऊपर-नीचे हिल रही थीं।
वो दोनों हाथों से काका की बाँहें पकड़कर उन्हें दूर करना चाहती थी, लेकिन उसके नाखून खुद ही उनके हाथों को और कसकर जकड़ रहे थे।

काका ने शरारती लहजे में कहा –
“तेरी चूत की ये तड़प तो बता रही है कि तू अब मेरे लंड का इंतज़ार कर रही है…”

गुड़िया की आँखों से आँसू निकल पड़े।
उसने सिर हिलाकर कहा –
“नहीं… लंड मत डालना काका… मेरी इज़्ज़त चली जाएगी…”

काका ने उसकी भीगी चूत से उँगलियाँ बाहर निकालकर जीभ चाटी और बोले –
“तेरी इज़्ज़त तो तेरी आँखों में है गुड़िया… और आँखों से तो तू पहले ही मुझे सौंप चुकी है।”


💔 Twist / Emotional

गुड़िया की हालत अब आधी बेहोशी जैसी थी।
वो हाँफते हुए बुदबुदाई –
“काका… प्लीज़… रुक जाइए… वरना मैं खुद को रोक नहीं पाऊँगी…”

काका ने उसकी गर्दन पर होंठ रखकर कहा –
“रोकना ही तो नहीं है… अब तू पूरी तरह मेरी है…”

गुड़िया की टाँगें ढीली होकर फैल गईं।
उसकी चूत पूरी तरह भीग चुकी थी और काका की उँगलियाँ दोबारा अंदर घुस गईं।
गुड़िया का जिस्म अब ना और हाँ के बीच डोलते हुए खुद को हवाले कर रहा था।

गुड़िया का जिस्म अब पूरी तरह काँप रहा था। उसकी चूत काका की उँगलियों से भीगकर एकदम गीली हो चुकी थी।

काका झुककर उसके कान में फुसफुसाए –
“अब तो तेरे रस का स्वाद चखना ही पड़ेगा गुड़िया…”

गुड़िया ने आँखें फाड़कर कहा –
“नहीं काका… वहाँ मत… गंदा लगेगा…”

लेकिन उसकी भीगी दरार से टपकती बूंदें खुद ही उसकी चाहत का राज खोल रही थीं।


काका नीचे झुके, उसकी जाँघें पकड़कर और फैलाईं।
गुड़िया ने घबराकर टाँगें बंद करनी चाहीं लेकिन काका की ताकत के आगे हार गई।

उनका चेहरा अब सीधा उसकी चूत के सामने था।
उन्होंने लंबी साँस खींची –
“हाय राम… कैसी मीठी खुशबू है तेरे रस में…”

गुड़िया ने शर्म से मुँह ढक लिया –
“काका… पाप लगेगा… वहाँ मत चाटो…”

काका ने बिना सुने अपनी जीभ उसकी भीगी चूत पर फेर दी।


“आssssssss… काकाआआआ…”

गुड़िया का पूरा जिस्म बिजली की तरह हिल उठा।
उसका पेट सिकुड़ गया, कमर ऊपर उठ गई और होंठों से दबा हुआ कराह बाहर फूट पड़ा।

काका अब उसकी चूत के दोनों होंठों को जीभ से खोलकर अंदर तक चाट रहे थे।
उनकी मूंछों की चुभन से गुड़िया की थरथराहट और बढ़ गई।

“ओssss… मतtt… वहाँ बहुत तेज़ लग रहा है…” – वो हाँफते हुए कह रही थी, लेकिन उसका जिस्म काका के सिर को कसकर अपनी जाँघों से पकड़ चुका था।


काका ने उँगली से उसकी चूत की दरार खोली और जीभ अंदर डाल दी।
गुड़िया ने जोर से चीख मारी –
“आssssss… मर जाऊँगी मैं…”

उसकी आँखों से पानी टपक रहा था, लेकिन होंठों से बस कराहें निकल रही थीं।

काका उसकी चूत के कोने-कोने को चाटते हुए बोले –
“तेरे रस का स्वाद शहद से भी मीठा है गुड़िया…”

गुड़िया ने मुँह ढककर कहा –
“हे भगवान… काका… मैं गंदी हो रही हूँ…”

काका हँसकर बोले –
“गंदी नहीं… तू तो अब मेरी रानी बन रही है…”


उनकी जीभ अब लगातार उसकी चूत के गहरे हिस्से को चाट रही थी।
गुड़िया का शरीर बेकाबू होकर बार-बार ऊपर उठ रहा था।
उसकी छातियाँ तेजी से हिल रही थीं और उसके होंठ लगातार सिसकारियों से गूँज रहे थे।

“म्म्म्म्म… ओह्ह्ह्ह्ह… काकाआआ… मत… प्लीज़… रुको…”
लेकिन उसकी पकड़ काका के बालों पर और कसती जा रही थी।


💔 Twist / Emotional

गुड़िया आधी बेहोश सी हो गई।
उसने रोते-रोते कहा –
“अगर किसी ने देख लिया तो मेरा जीना हराम हो जाएगा काका…”

काका ने उसकी चूत से जीभ हटाकर कहा –
“तेरी ये हालत तो अब मुझे और पागल कर रही है… कोई देख भी ले तो कहेगा, गुड़िया का जिस्म तो पहले से ही मेरा था।”

गुड़िया की आँखों में आँसू और जिस्म में तड़प एक साथ बह रही थी।
उसका पूरा अस्तित्व अब हाँ और ना के बीच फँस चुका था।

गुड़िया का चेहरा अब पूरे लाल हो चुका था।
उसकी भीगी चूत काका की जीभ से ऐसे चमक रही थी जैसे ओस से भीगी पंखुड़ी।

काका मुस्कुराए –
“तेरी चूत तो खुद ही मुझे और अंदर आने के लिए बुला रही है गुड़िया…”

गुड़िया ने आँखें कसकर बंद कर लीं –
“हे भगवान… रोक लो इनको… नहीं तो मैं पाप में डूब जाऊँगी…”

लेकिन उसके जिस्म ने खुद को रोकना छोड़ दिया था।
उसकी जाँघें काका के सिर को और कस रही थीं।


काका ने अचानक अपनी दो उँगलियाँ उसकी चूत में डाल दीं।

“आssssssss… काकाआआआआ!”
गुड़िया चीख पड़ी, उसका पूरा शरीर पानी की तरह काँप उठा।

काका हँसते हुए बोले –
“शोर मत कर गुड़िया, वरना गाँव वाले सुन लेंगे…”

गुड़िया ने हाँफते हुए अपने मुँह पर हाथ रखा।
लेकिन उसके होंठों से कराहें दब नहीं पाईं।


अब काका एक हाथ से उसकी चूत में उँगलियाँ चला रहे थे और दूसरे हाथ से उसके बड़े-बड़े दूधिया स्तनों को मसल रहे थे।

उनकी जीभ फिर से नीचे झुकी और चूत की नोक पर रगड़ने लगी।
उँगलियाँ अंदर-बाहर हो रही थीं, और जीभ ऊपर-नीचे।

गुड़िया का जिस्म बेकाबू होकर बार-बार उछल रहा था।
उसकी आँखें उलट रही थीं, और कमर थरथराकर ऊपर उठ रही थी।


“म्म्म्म… ओह्ह्ह्ह… मर जाऊँगी… काकाआआ… आssss…”
उसके होंठ काँपते हुए लगातार सिसकियाँ छोड़ रहे थे।

काका और तेज़ हो गए।
उनकी उँगलियाँ अब गहरे तक जा रही थीं और जीभ उसकी नमी को चूस रही थी।

गुड़िया का पूरा तन पसीने से भीग चुका था।
उसकी छातियाँ ऐसे हिल रही थीं जैसे मटके से दूध छलक रहा हो।


💔 Twist / Emotional

गुड़िया रोते-रोते कराह उठी –
“काका… मुझे लग रहा है मैं टूट जाऊँगी… कुछ हो जाएगा…”

काका ने उसकी आँखों में देखकर कहा –
“तू अब मेरी है गुड़िया… आज के बाद तेरा तन-मन कोई और छू नहीं पाएगा…”

गुड़िया का दिल जोर से धड़क उठा।
उसके मन में डर और वासना का तूफान एक साथ उठ रहा था।

तालाब के किनारे रात की नमी और शंभू काका की गर्म साँसें…
गुड़िया का जिस्म काँपते हुए उनके हवाले हो चुका था।

काका ने उसे धीरे से उठाकर मिट्टी पर लिटा दिया।
उसका गीला घाघरा कमर तक सरक चुका था और दूधिया जाँघें पूरी तरह सामने थीं।

“गुड़िया… अब रोक मत… तेरे जिस्म की हर बूंद मुझे बुला रही है…” – काका ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा।

गुड़िया ने मुँह फेर लिया, लेकिन उसके होंठों से फुसफुसाहट निकली –
“काका… मैं और नहीं सह पा रही…”


काका ने उसका ब्लाउज खींचकर पूरी तरह खोल दिया।
गुड़िया की मोटी-मोटी चूचियाँ अब खुले आसमान तले कड़क होकर खड़ी थीं।

“वाह… क्या मटके दिए हैं भगवान ने…” – काका ने दोनों को अपने मुँह में दबोच लिया।

गुड़िया का शरीर थरथरा उठा।
“आsssssss… धीरे काका… जल रहे हैं…”

काका कभी उसकी बायीं चूची चूसते, कभी दायीं को दाँतों से दबाते।
उनकी जीभ बार-बार उसकी गोलाईयों पर घूम रही थी।

गुड़िया कराहते हुए बार-बार कमर उचकाने लगी।


अब काका धीरे-धीरे नीचे सरकने लगे।
उन्होंने उसकी चूत पर हाथ रखकर कहा –
“तेरी ये दरार अब मेरे लंड के बिना अधूरी है…”

गुड़िया ने डरते-डरते कहा –
“नहीं काका… वहाँ मत… मैं मर जाऊँगी…”

लेकिन उसके होंठों के बीच से निकली ये “ना” उसके जिस्म की बेकाबू हाँ में बदल चुकी थी।
उसकी चूत रस से ऐसे भीग रही थी जैसे पानी का नल खुला हो।


काका ने अपनी धोती खोल दी।
उनका मोटा, कड़क लंड बाहर निकल आया।
गुड़िया ने पहली बार उसे देखा और आँखें फाड़ दीं।

“हाय दइया… इतना बड़ा…” – वो घबराकर काँप गई।

काका हँसते हुए बोले –
“अभी तो सिर्फ दिखाया है… जब तेरी चूत में जाएगा, तब तू असली मज़ा समझेगी…”

गुड़िया ने घबराकर चेहरा ढक लिया।
लेकिन उसकी टाँगें खुद-ब-खुद और फैल गईं।


💔 Twist / Emotional

काका ने उसका हाथ पकड़कर अपने लंड पर रख दिया।
गुड़िया की उँगलियाँ काँपती हुई उसे छू गईं।

उसने झटके से हाथ खींच लिया –
“नहीं… ये पाप है…”

काका ने उसकी ठुड्डी पकड़कर कहा –
“पाप नहीं… ये तेरी रगों में छुपी आग है, जो अब मैं बुझाने आया हूँ।”

गुड़िया की आँखों से आँसू टपके, लेकिन उसके जिस्म से कराहों की धड़कन रुक नहीं रही थी।

गुड़िया की साँसें तेज़ हो चुकी थीं।
उसके चेहरे पर आँसू की नमी और होंठों से फूटती कराहें… दोनों मिलकर उसे और भी हसीन बना रहे थे।

शंभू काका ने अपना कड़क लंड हाथ में पकड़ा और धीरे-धीरे गुड़िया की भीगी चूत पर रगड़ना शुरू किया।

“म्म्म्म्म…” – गुड़िया ने कराहते हुए अपनी टाँगें और कसकर भींच लीं।
“काका… ये मत करो… मैं टूट जाऊँगी…”

काका हँसते हुए फुसफुसाए –
“अभी तो सिर्फ रगड़ रहा हूँ गुड़िया… जब अंदर डालूँगा न, तब तू खुद कहेगी और डालो…”


उनका लंड बार-बार उसकी चूत के होठों पर ऊपर-नीचे सरक रहा था।
रस से भीगी दरार पर जब भी काका की नोक टकराती, गुड़िया जोर से कराह उठती।

“आsssssss… धीरे… ओssss… काकाआआ…”

गुड़िया का पूरा तन थरथरा रहा था।
उसकी छातियाँ जोर-जोर से ऊपर-नीचे हो रही थीं।
उसकी उँगलियाँ मिट्टी में धँस रही थीं।


काका ने उसकी दोनों जाँघें पकड़कर और चौड़ा कर दिया।
अब उनका लंड उसकी चूत की दरार पर पूरी तरह टिक गया था।

“गुड़िया… अब रुकना नामुमकिन है…”

गुड़िया ने आँखें कसकर बंद कर लीं –
“हे भगवान… बचा लेना मुझे…”

लेकिन उसके होंठों से साथ ही एक सिसकारी भी निकली –
“म्म्म्म्म… ओssss…”


काका ने धीरे-धीरे अपना लंड उसकी चूत की दरार में धँसाना शुरू किया।
नोक बस अंदर की ओर धंस रही थी, लेकिन पूरा लंड अब भी बाहर था।

गुड़िया ने दर्द और मज़े से काँपते हुए कहा –
“आssssssss… फट जाऊँगी… निकालो काका…”

काका हँसकर बोले –
“अभी तो बस सिरा है… पूरा जाएगा तो तू पागल हो जाएगी…”


💔 Twist / Emotional

गुड़िया की आँखों से फिर आँसू बह निकले।
उसने काँपती आवाज़ में कहा –
“अगर किसी ने देख लिया तो मैं कहीं की नहीं रहूँगी…”

काका ने उसके होंठों पर हाथ रखकर कहा –
“चुप… ये तालाब हमारी गवाही देगा, कोई और नहीं।”

उसकी चूत अब और भी रस छोड़ने लगी।
गुड़िया खुद समझ नहीं पा रही थी कि वो ना कह रही है या उसके जिस्म से हाँ निकल रही है

गुड़िया का जिस्म मिट्टी पर तड़प रहा था।
उसकी चूत रस से ऐसे भीग चुकी थी कि काका का मोटा लंड और आसानी से फिसल रहा था।

काका ने उसकी कमर दबाकर कहा –
“आज तुझे ऐसा मज़ा दूँगा गुड़िया, जो तू जिंदगी भर भूल नहीं पाएगी।”

गुड़िया काँपती आवाज़ में बोली –
“काका… मुझे डर लग रहा है… मेरा जिस्म फट जाएगा…”

काका ने मुस्कुराकर अपना लंड उसकी चूत पर और कसकर टिकाया –
“फटेगी नहीं… खिलेगी मेरी रानी…”


🍑 Climax

काका ने जोर लगाकर धक्का मारा।

“आssssssssssss… काकाआआआआ!”
गुड़िया चीख उठी।
उनका पूरा लंड उसकी चूत में आधा तक धँस चुका था।

गुड़िया की आँखों से आँसू बह निकले, लेकिन उसके होंठों से कराह भी निकल रही थी।
“ओssssss… मर जाऊँगी मैं…”

काका ने उसकी कमर कसकर पकड़ ली और बार-बार धक्के मारने लगे।
हर धक्के के साथ उनका मोटा लंड और गहराई तक जाता गया।

“म्म्म्म… हाय दइया… काकाआआ… मत करो… ओsssssss…”

लेकिन उसकी टाँगें खुद-ब-खुद काका की कमर को जकड़ चुकी थीं।


अब काका पूरे जोर से धक्के मार रहे थे।
उनका लंड गुड़िया की भीगी चूत में ऐसे आवाज़ कर रहा था जैसे कोई मिट्टी में डंडा घुसा रहा हो।

“ठप्प-ठप्प-ठप्प…”
हर धक्के की गूंज तालाब के किनारे रात में फैल रही थी।

गुड़िया का जिस्म अब पागलों की तरह काँप रहा था।
उसकी छातियाँ काका के मुँह में थीं और उसका मुँह लगातार कराहों से भरा हुआ।

“आsss… ओsss… और तेज़ काकाआआ… फाड़ दो मुझे…” – अब उसकी जुबान भी उसकी चूत जैसी भीग चुकी थी।


काका ने उसकी टाँगें अपने कंधों पर डाल लीं और और भी गहराई तक धँस गए।

“म्म्म्म्म… हायssss… गुड़िया…”
उनका लंड अब पूरा अंदर तक जा चुका था।

गुड़िया चिल्लाकर बोली –
“आsssssss… ओssssss… म्म्म्म्म…”
उसका पूरा तन बिजली की तरह हिल उठा और पहली बार उसकी चूत जोर से फड़की।

काका ने भी आखिरी जोर लगाया और अपना सारा पानी उसकी चूत के अंदर छोड़ दिया।

“म्म्म्म्म… आssssss…”


💔 Twist / Emotional

दोनों मिट्टी पर थककर गिर गए।
गुड़िया की आँखें आँसुओं से भरी थीं।
उसने कांपते हुए कहा –
“काका… अब मेरा क्या होगा… अगर कोई जान गया तो?”

काका ने उसके गाल पर हाथ रखकर कहा –
“अब तू सिर्फ मेरी है गुड़िया… चाहे दुनिया मान ले या ना माने।”

गुड़िया ने आँसू पोंछे, लेकिन उसके होंठों पर एक हल्की सी मुस्कान थी।
वो पाप और सुख की उस गहराई में डूब चुकी थी, जहाँ से अब वापसी नहीं थी।


🔒 अंत / Hook End

तालाब की रात उस पापी खेल की गवाही देती रही।
गुड़िया और शंभू काका दोनों के जिस्म अब एक हो चुके थे।

लेकिन दूर झाड़ियों में किसी की हल्की सरसराहट हुई…
क्या किसी ने उन्हें देख लिया था?

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