Short Teaser
धूप कुछ ज़्यादा ही तीखी थी ,हवा कुछ ज़्यादा ही शरारती।पार्वती की चुन्नी जब नीम की डाल पर जा अटकी ,तभी पीछे से किसी की धीमी हँसी सुनाई दी – और उसके बाद दिल की धड़कनें।
Character Detail
पार्वती (26) – गोरी ,साँवली धूप में चमकती त्वचा ,और चेहरे पर वो शरम जो कभी छिपती नहीं।गाँव में सब कहते – " मुखिया की बहू बड़ी सीधी है।" पर किसी को नहीं पता ,उसके भीतर बरसों से कोई बेचैनी सुलग रही है।रामेश (22) – देवर ,जवान ,ताकतवर और आँखों में वही शरारत जो किसी राज़ की तरह छिपी हो।दिन में हलवाई की दुकान पर रहता ,मगर शाम होते ही पंचायत के पीछे के रास्ते पर उसके कदम खुद – ब – खुद मुड़ जाते।
Plot / Setting
गाँव की पंचायत के पीछे की खाली ज़मीन – जहाँ दिन में बकरियाँ चरतीं और शाम को ठंडी हवा बहती।वहीं पास में नीम का पुराना पेड़ ,जिसके नीचे कभी – कभी पार्वती मिट्टी में पानी डालने या गोबर के उपले लगाने आती थी।किसी को नहीं पता ,ये जगह अब उनकी गुप्त मुलाक़ातों का कोना बन चुकी थी।
हवा में आज कुछ अलग था – जैसे किसी ने जानबूझकर इस दोपहर को गरम किया हो।पार्वती ने अपनी बालों की लट पीछे सरकाई ,और नीचे झुककर घड़ा सीधा किया।तभी पीछे से किसी ने कहा – " इतनी दोपहर में अकेली ,भाभी ?" उसने पलटकर देखा – रामेश था ,मुस्कुराता हुआ ,और हाथ में कुछ नहीं …सिवाय उस चुन्नी के जो हवा से उड़कर उसी के पास पहुँच गई थी।
" ये मेरी है ," पार्वती ने धीमे स्वर में कहा।" पता है ," उसने मुस्कराकर जवाब दिया , " इसलिए तो पकड़ी है …नहीं तो उड़ा देता।"
पार्वती ने उसका हाथ छुड़ाने की कोशिश की ,मगर चुन्नी उसी की पकड़ में रही।हवा और तेज़ हुई ,और उसके बालों की कुछ लटें उसके चेहरे पर नाचने लगीं।रामेश ने उँगलियों से धीरे से वो लट हटाई – बस एक पल को ,मगर दोनों की साँसें रुक – सी गईं।
" लोग देख लेंगे ," पार्वती फुसफुसाई।" तो क्या ?" उसने हँसते हुए कहा , " कह देंगे ,हवा ज़्यादा चल रही थी।"
पार्वती के चेहरे पर झिझक और शरारत का मिला – जुला भाव था।उसने धीमे से कहा , " तुम्हें मज़ाक सूझता रहता है हर वक़्त।" रामेश ने नज़रों से जवाब दिया – " और तुम्हें डर लगता है हर वक़्त।"
दोनों के बीच कुछ पल के लिए चुप्पी छा गई।हवा अब भी चुन्नी से खेल रही थी ,और पास से गुजरती बकरियों की घंटियों की टनटनाहट उस सन्नाटे में अजीब – सी लय बना रही थी।
रामेश थोड़ा आगे बढ़ा ,और कहा , " भाभी ,बताओ ना ,हर दिन यहाँ क्यों आती हो ?खेत तो उधर हैं।" पार्वती ने नीचे देखा ,मिट्टी से खेलती उँगलियाँ काँप गईं , " कभी – कभी शांति चाहिए होती है।" " या किसी की संगत ," उसने बात काटी।
पार्वती ने नज़रों से मना किया ,मगर दिल की धड़कनें मान नहीं रहीं थीं।" तुम्हें डर नहीं लगता ?" उसने पूछा।रामेश ने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा , " डर तो मुझे तब लगेगा जब तुम आना बंद कर दोगी।"
वो पल ऐसा था ,जब हवा रुक गई ,नीम के पत्ते भी ठहर गए।दोनों की आँखें बस एक – दूसरे में अटकी रहीं।पार्वती ने चुन्नी वापस ली – मगर इस बार बिना ज़ोर लगाए।शायद चाहती थी कि उसका हाथ कुछ देर और वही रहे।
दूर से बुधिया की आवाज़ आई – " पार्वती !घर चल ,मुखिया पूछ रहे हैं।" पार्वती चौंक गई ,जल्दी से चुन्नी कंधे पर ली और बोली , " जा रही हूँ।" रामेश ने मुस्कुराते हुए कहा , " कल फिर इतनी ही हवा चलेगी क्या ?" वो बिना जवाब दिए चली गई ,पर उसके होंठों पर हल्की मुस्कान रह गई – और आँखों में अधूरी चाह।
हवा फिर वैसी ही थी – शरारती ,सरकती ,और हर पत्ते को कुछ कहती हुई।नीम के नीचे आज रामेश पहले से बैठा था ,हाथ में वही पुरानी चुन्नी लिए।उसकी आँखें बार – बार उस रास्ते की ओर उठ रही थीं जहाँ से कल पार्वती गई थी।
और तभी धूप में चमकती उसकी परछाई दिखी।पार्वती आई थी – सिर पर पल्लू ढके ,मगर चेहरे की मुस्कान सब कुछ कह रही थी।
" आज फिर हवा चल रही है ," रामेश ने हल्के से कहा।" और तुम फिर यहीं बैठे हो ?" पार्वती ने धीमे स्वर में जवाब दिया।" कहीं और जाऊँ तो हवा मुझे बताती नहीं कि तुम कब आओगी ," उसने हँसते हुए कहा।
पार्वती ने नीचे झुककर घड़ा रखा ,मगर इस बार उसकी आँखें खुद उठीं – सीधे रामेश की ओर।कुछ पल को वो दोनों बस देख रहे थे – जैसे कोई पुराना गुनाह फिर से याद आ गया हो।
" लोगों को पता चल जाएगा तो ?" उसने झिझकते हुए कहा।" तो कह देंगे ,पंचायत के पीछे सिर्फ नीम का साया नहीं ,कुछ और भी है ," उसने हौले से कहा।
पार्वती मुस्कुरा दी – मगर आँखों में डर और चाह दोनों थे।" तुम बहुत बदमाश हो ," उसने कहा।रामेश पास आकर बोला , " और तुम बहुत प्यारी।"
उसकी आवाज़ में वो धीमी गर्मी थी जो सीधे साँसों में उतर जाए।पार्वती का दिल तेज़ धड़कने लगा।उसने घड़े में पानी डाला ,मगर उसके हाथ काँप रहे थे।रामेश ने हाथ बढ़ाकर घड़ा थाम लिया – दोनों के हाथ एक पल को साथ हुए।
" छ ोड़ो ," पार्वती ने कहा।" क्यों ?" " क ्योंकि " " क्योंकि दिल की धड़कनें ज़्यादा सुनाई देने लगेंगी ?" उसने मुस्कराते हुए कहा।
उसके ये शब्द जैसे हवा में गूँज गए।पार्वती ने कुछ नहीं कहा – बस धीरे से पल्लू ठीक किया और मिट्टी पर बैठ गई।नीम की छाया अब दोनों पर बराबर गिर रही थी।
कुछ देर तक दोनों चुप रहे।फिर रामेश ने कह ा ," कल तुम डर रही थीं ,आज खुद चली आईं ?" " कभ ी – कभी डर भी अच्छा लगता है ," पार्वती ने धीरे से कहा।" और छिपना ?" " व ो तो और भी अच्छा ," उसने फुसफुसाकर कहा।
वो पल ,वो आवाज़ ,वो झिझक – सब कुछ हवा में मिल गया।दूर खेतों से किसी ने बैलों की घंटी बजाई ,और पंचायत की ओर से कुछ बच्चों की हँसी आई।लेकिन नीम के नीचे बस एक खामोशी थी – जो सब कह रही थी।
रामेश ने चुन्नी उसके पास रख दी।" कल की हवा लौट आई ह ै ," उसने कहा।पार्वती ने चुन्नी ली ,और धीरे से बोली , " तो शायद कल जैसी गलती फिर हो जाए।" " गलती ?" " ह ाँ ,गलती या चाहत।"
उसकी आवाज़ धीमी थी ,मगर उसमें कुछ ऐसा था जो रामेश के दिल तक उतर गया।वो झुककर मिट्टी में उँगलियाँ फेरने लगी ,और उसके बाल फिर से चेहरे पर आ गए।रामेश ने आगे बढ़कर बाल हटाए – बस एक पल को।इस बार पार्वती ने पीछे नहीं हटाया।
नीम की पत्तियों ने फिर सरसराहट की – जैसे वो भी इस राज़ को सुनकर मुस्करा उठी हों।
सुबह की धूप अभी हल्की थी ,पर हवा में अजीब – सी गर्मी थी।पार्वती घर के आँगन में बर्तन धो रही थी ,तभी उसकी नज़र दीवार के पार गई – नीम की डाल पर बँधा वही चुन्नी का कोना लहरा रहा था।उसके होंठों पर मुस्कान आई ,पर दिल धक् – धक् करने लगा।
वो जानती थी ,ये बुलावा है – और उसका जवाब पहले से तैयार था।
थोड़ी देर बाद जब गाँव की औरतें कुएँ की ओर चलीं ,तो पार्वती ने हौले से कहा , " मैं भी आती हूँ।" मगर उसके कदम कुएँ की ओर नहीं ,पंचायत के पीछे की ओर मुड़ गए।
नीम के नीचे रामेश पहले से खड़ा था ,आँखों में वही नटखट चमक।" सोचा नहीं था ,इतनी जल्दी आ जाओगी ," उसने कहा।पार्वती ने जवाब में बस इतना कहा – " हवा आज फिर चल रही है।"
वो हँस पड़ा।" तुम्हें तो अब ये नीम की हवा ही बहाने लगने लगी है।" " और तुम्हें ये नीम का पेड ़ ," उसने मुस्कराकर कहा , " हर बार यहीं क्यों रहते हो ?" " क ्योंकि यहाँ तुम आ जाती हो।"
वो पल थम गया।चारों तरफ सन्नाटा था ,बस पत्तों की सरसराहट और दिलों की आवाज़।पार्वती ने चुन्नी ठीक की ,पर वो हल्के से उसके कंधे से फिसल गई।रामेश की निगाहें कुछ पल वहीं अटक गईं ,और पार्वती ने उसे देख लिया।
" कहीं देखना तुम्हारी आदत बन गई है ," उसने धीमे से कहा।" और छिपना तुम्हारी ," उसने जवाब दिया।
दोनों मुस्कुराए ,मगर उस मुस्कान में शरम और चाह दोनों थीं।वो धीरे – धीरे पास आया ,जैसे किसी डर को परख रहा हो।हवा अब और भी गर्म लग रही थी – जैसे नीम के नीचे कोई अंगार सुलग रहा हो।
" लोग देख लेंगे ," पार्वती ने धीरे से कहा।" तो देख लें ," रामेश ने फुसफुसाकर कहा , " कह देंगे ,पंचायत के पीछे सिर्फ पेड़ नहीं ,कहानी भी उगती है।"
पार्वती की साँसें तेज़ हो गईं।उसके बाल गालों पर आ गए ,और उसने उन्हें पीछे करने की कोशिश की – मगर रामेश ने पहले ही उँगलियों से बाल सरका दिए।वो पल जैसे किसी अदृश्य रेखा को पार कर गया।
" तुम्हें डर नहीं लगता ?" उसने फिर पूछा।" तुम्हारी आँखों से ज़्यादा किसी चीज़ से डर नहीं लगता ," उसने कहा , " क्योंकि इनमें कोई रोक नहीं दिखती।"
पार्वती ने नज़र झुका ली।घड़ा उसके हाथ से गिर गया – पानी मिट्टी में बहा ,और मिट्टी से भाप उठी।दोनों झुके उसे उठाने के लिए – और पहली बार उनके कंधे एक – दूसरे से छू गए।
वो छुअन छोटी थी ,मगर दिल के अंदर तक उतर गई।पार्वती ने धीरे से कहा , " अगर कोई देख ले " " तो उसे भी हवा का झोंका कह देंगे ," उसने मुस्कराते हुए कहा।
उनकी साँसें अब एक – दूसरे के पास थीं – इतनी पास कि फासला महसूस होना भी बंद हो गया था।नीम के पत्ते सरसराने लगे ,जैसे वो इस पल को छुपाने की कोशिश कर रहे हों।
दोपहर की धूप आज कुछ और थी – भारी ,सुनहरी और पसीने से भीगी।पार्वती ने छप्पर के नीचे से झाँका ,हवा फिर उसी दिशा में बह रही थी।नीम का पेड़ दिखा ,दूर से।उसका मन धक से हुआ।हर बार वो खुद को समझाती थी , " आज नहीं जाऊँगी।" लेकिन दिल मानता कहाँ था।
वो चली – धीरे ,किसी बहाने से ,जैसे कुछ गिरा हो जो उठाना ज़रूरी हो।
पंचायत के पीछे ,नीम के नीचे ,रामेश मिट्टी में कुछ बना रहा था – उँगलियों से किसी नाम का अक्षर।जैसे ही उसने उसके कदमों की आहट सुनी ,मिट्टी पर बनी लकीर को झट से मिटा दिया।" इतनी जल्दी आ गईं ?" उसने मुस्कराकर पूछा।" क्यों ,देर करने पर शिकायत होती ?" पार्वती ने हल्के से ताना मारा।
दोनों के बीच का डर अब आधा रह गया था।हवा अब सीधी बात कर रही थी।
" त ुम्हारी आँखों में आज कुछ और है ," रामेश ने कहा।" क्या ?" " लगत ा है जैसे कल वाली हवा अभी तक गई ही नहीं।"
पार्वती ने सिर झुका लिया।" लोग बातें करते हैं ,पंचायत के पीछे कोई रहस्यमयी औरत दिखती है ," उसने धीरे से कहा।" और मैं तो वही औरत देखता हूँ हर रोज़ ," रामेश ने मुस्कराकर कहा , " जिससे पूरा गाँव जलता होगा।"
उसकी बात सुनकर पार्वती हँसी नहीं ,बस उसकी ओर देखती रही – लंबे समय तक।फिर बोली , " ऐसी बातें मत करो ,डर लगता है।" " डर तो वही दिखता है ,जहाँ चाह छिपी हो ," उसने जवाब दिया।
वो शब्द जैसे किसी पुरानी गाँठ को खोल गए।पार्वती ने चुन्नी ठीक की ,मगर हवा ने फिर से खेल किया – पल्लू हल्का सरका ,और नीम के पत्ते हिलने लगे।रामेश का हाथ बस एक पल को बढ़ा ,चुन्नी सँभालने के लिए ,मगर उसी पल उनकी उँगलियाँ छू गईं।
पार्वती की साँस अटक गई।दोनों की नज़रें मिलीं।मौन अब बोलने लगा था।
" य े सब सही नहीं " उसने फुसफुसाकर कहा।" पर अच्छा तो लगता है ?" पार्वती ने कोई जवाब नहीं दिया ,बस नज़रें झुका लीं।
नीम के पत्तों से छनती धूप दोनों पर पड़ रही थी – और हवा अब उतनी धीमी नहीं थी।उनके बीच की दूरी बस कुछ इंच रह गई थी।
अचानक ,पीछे से किसी की खाँसी सुनाई दी – सूखी ,धीमी ,मगर डर जगाने वाली।दोनों झट से अलग हुए।पार्वती ने पल्लू सँभाला ,रामेश ने इधर – उधर देखा।दूर किसी झाड़ी के पीछे एक साया हिला – जैसे कोई देख रहा हो ,और फिर गायब हो गया।
" किसी ने ?" पार्वती की आवाज़ काँपी।रामेश ने गहरी साँस ली , " शायद कोई बकरियाँ चराने आया था।" " या बुधिया ," उसने डरते हुए कहा।
उसकी आँखों में डर अब सच था – और चाह उससे भी गहरी।
" अगर किसी ने देखा तो " " तो ये भी पंचायत का मसला बन जाएगा ," रामेश ने मुस्कराने की कोशिश की , " और मैं कह दूँगा ,हवा दोषी थी।"
पार्वती ने उसका हाथ झटक दिया , " मज़ाक मत करो ,अब बात आगे नहीं बढ़नी चाहिए।" लेकिन उसके बोलते वक्त उसकी आँखों में जो चमक थी ,वो कुछ और कह रही थी।
रामेश ने बस कह ा ," अगर नहीं बढ़नी थी ,तो तुम आती क्यों हो ?" वो चुप रही।बस धीरे से बोली , " शायद इसलिए कि नीम के नीचे जो सुकून मिलता है ,वो और कहीं नहीं।"
सुबह की हल्की धूप अब गाँव की गलियों में फैल चुकी थी।पार्वती अपने घर के आँगन में बैठी थी ,हाथों में बर्तन और मन में बेचैनी।कल नीम के नीचे जो हुआ ,वो अब बस यादों में नहीं था – कुछ लोग शायद देख भी गए थे।
" आज फिर जाऊँ ?" उसने खुद से कहा।दिल कह रहा था हाँ ,दिमाग़ रोक रहा था नहीं।
नीम के नीचे रामेश पहले से इंतज़ार कर रहा था।उसकी आँखों में वही नटखट चमक थी ,लेकिन इस बार उनके बीच की हवा थोड़ी सतर्क थी।" लगता है ,कुछ लोग कल की बातें फ़ैलाने लगे हैं ," रामेश ने फुसफुसाकर कहा।पार्वती ने सिर हिलाया , " किसे पता चल गया ,मुझे डर लग रहा है।"
वो दोनों बस देखते रहे – आस – पास का सन्नाटा और नीम की छाँव में छुपा वातावरण।हवा अब भी हल्की शरारत कर रही थी ,पत्तों को झुलसा रही थी।
रामेश ने धीरे से कहा , " फिर भी तुम आईं।" " हाँ क्योंकि यह जगह मुझे शांति देती है।और तुम्हारे साथ थोड़ा और।"
दोनों की नज़रें मिलीं ,और इस बार दोनों जानते थे कि कोई उनकी ओर देख सकता है।पार्वती ने पल्लू ठीक किया ,और नीम की शाखाओं की ओर झाँका – कहीं कोई परछाई फिर से हिली।" क्या कोई देख रहा है ?" उसने फुसफुसाया।" शायद लेकिन कौन परवाह करता है ?" रामेश ने मुस्कराते हुए कहा , " अगर यहाँ तुम्हारे साथ होना ही मंज़ूर है।"
उनकी साँसें अब तेज़ थी।हाँ ,खिंचाव बढ़ रहा था – सिर्फ़ हाथों और आँखों की नज़रों का खेल।पार्वती ने मिट्टी पर अपने हाथ फेरते हुए कहा , " अगर कोई देख ले " " तो क्या ?" रामेश ने धीरे से कहा , " ये भी हमारी कहानी का हिस्सा बन जाएगा।"
अचानक ,दूर से बच्चों की हँसी और बकरियों की घंटियों की आवाज़ आई।दोनों झट से अलग हुए ,पर दिल एक दूसरे के पास रह गया।
" कल फिर आएँगे ?" उसने धीरे से पूछा।रामेश ने सिर हिलाया , " अगर हवा चलेगी ,तो मैं इंतज़ार करूँगा।"
पार्वती ने पीछे मुड़कर देखा – किसी ने शायद उनकी ओर झाँका था।उसकी आँखों में डर और चाह दोनों थीं।" अगर किसी ने देखा ?" " तो ये रहस्य हमेशा हवा में घुला रहेगा ," रामेश ने मुस्कराते हुए कहा।
नीम की पत्तियाँ सरसराईं – जैसे उन्हें भी पता था कि आज का दिन ,कल की तरह नहीं होगा।दोनों ने एक – दूसरे की ओर आखिरी बार देखा ,और धीरे – धीरे पीछे मुड़कर अलग हुए – पर दिलों में वही खिंचाव ,वही अधूरी चाह ,और वही forbidden thrill रह गई।
दोपहर की धूप तेज़ थी ,लेकिन नीम की छाँव में हर चीज़ अलग लग रही थी।पार्वती आज भी वही रास्ता पकड़ी – दिल में हल्की घबराहट ,होंठों पर मुस्कान।नीम के नीचे रामेश पहले से खड़ा था ,हाथ में मिट्टी का थोड़ा सा ढेर – शायद बहाना था ,पर आँखों की गर्मी सब बयान कर रही थी।
" आज हवा कुछ ज़्यादा गर्म लग रही है ," रामेश ने फुसफुसाया।" और तुम्हारी निगाहें भी ," पार्वती ने धीरे से कहा।
उनकी नज़रें टकराईं और पल भर के लिए समय रुक गया।पत्ते सरसराए ,ज ैसे खामोशी को और तीव्र बना रहे हों।रामेश ने धीरे से कहा , " पिछली बार तुम इतनी जल्दी चली गईं आज भी इतनी जल्दी ?" " नह ीं ," पार्वती ने हँसते हुए कहा , " आज कुछ और महसूस हो रहा है।"
हवा में हल्की सी खुशबू थी ,मिट्टी की गर्माहट और पसीने की नमी।उनके कदम एक – दूसरे की तरफ बढ़े ,लेकिन दोनों जानते थे कि किसी की नजर पड़ सकती है।" अगर कोई देख ले " पार्वती ने धीरे से कहा।" तो क्या ?" रामेश ने मुस्कुराते हुए पूछा।" तो " उसने जवाब टाल दिया ,मगर आँखों में खिंचाव साफ़ था।
उनका हाथ बस एक – दूसरे के पास आया ,बिना छूए।पर धड़कनें तेज़ थीं ,साँसें मिल रही थीं।हवा की हल्की सरसराहट और नीम की छाँव की ठंडी गर्माहट में दोनों खो गए।
" तुम्हारी आँखों में आज कुछ और है ," रामेश ने धीरे से कहा।" शायद तुम देख रहे हो ," पार्वती ने जवाब दिया।" और शायद मैं सिर्फ देख रहा हूँ ," उसने कहा , " क्योंकि तुम्हारा खिंचाव मुझे रोक नहीं पा रहा।"
पार्वती ने नज़र झुका ली ,पर उसके होंठ हल्के से कांप रहे थे।" ये सब ठीक नहीं " उसने फुसफुसाया।" पर अच्छा लगता है ," रामेश ने धीरे से कहा।
हवा फिर हल्की तेज़ हुई ,पल्लू उसके कंधे से सरक गया।पार्वती ने खुद से उसे ठीक किया ,लेकिन उस हल्के छूने ने दिल में गर्माहट पैदा कर दी।दोनों के बीच अब साँसों का खेल ,आँखों का खिंचाव और खामोशी का teasing सभी मिल गए थे।
दूर से कोई बकरियों की घंटी और बच्चों की हँसी आई।दोनों झट से अलग हुए ,लेकिन नज़रें अभी भी मिली हुई थीं।" कल फिर वही हवा चलेगी ?" पार्वती ने पूछा।" अगर चलेगी तो मैं वहीं रहूँगा ," रामेश ने मुस्कराते हुए कहा।
नीम की पत्तियाँ सरसराईं ,और हवा की हल्की गर्माहट दोनों के बीच की खिंचाव को और गहरा कर गई।पार्वती ने धीरे से कहा , " अगर कोई देख रहा है " " तो उसे भी ये खेल मज़ेदार लगेगा ," रामेश ने फुसफुसाकर कहा।
दोनों ने पल भर के लिए एक – दूसरे को देखा – अधूरी चाह , forbidden thrill और हवा में घुलती खामोशी।शायद यही वो पल था जब हर धड़कन ने अपनी बात कह दी थी – बिना किसी शब्द के।
दोपहर की हवा आज कुछ और तेज़ थी ,पर नीम की छाँव अब और भी गर्म महसूस हो रही थी।पार्वती कदम – कदम पर घबराई ,लेकिन दिल की खिंचाव उसे खींच लाया।नीम के नीचे रामेश पहले से खड़ा था ,आँखों में वही नटखट चमक ,और हाथ में बस मिट्टी के ढेर का बहाना।
" आज तुम जल्दी आईं ," उसने फुसफुसाकर कहा।" और तुम वहीँ खड़े हो ," पार्वती ने धीरे से कहा , " लगता है हवा का खेल अब और मज़ेदार होने वाला है।"
उनकी नज़रें मिलीं – और उस पल हर धड़कन जैसे जोर से बोलने लगी।हवा सरसराई ,पल्लू हल्का सा सरका ,और मिट्टी से उठती गर्माहट ने दोनों के आसपास की हवा को और घना कर दिया।
रामेश ने धीरे से कह ा ," अगर कोई देख ले तो क्या होगा ?" पार्वती ने सिर हिलाया , " तो क्या ,ये सब तो सिर्फ़ हमारी कहानी है।किसी को इसका हिस्सा बनने की ज़रूरत नहीं।"
वो पल चुप्पी में घुल गया।पार्वती ने मिट्टी में उँगलियाँ फेरते हुए कह ा ," तुम हमेशा ऐसा क्यों करते हो ?" " क ्या ?" " य े खिंचाव , teasing,वो सब।" " क्योंकि तुम्हारे बिना ये हवा खाली लगती है ," उसने मुस्कराते हुए कहा।
हवा फिर तेज़ हुई ,और पत्तों की सरसराहट ने उस चुप्पी को और गहरी बना दिया।दोनों की साँसें अब एक – दूसरे के पास थीं – बस इशारों में ,अधूरी चाह और खामोश teasing ।
पार्वती ने पल्लू ठीक किया ,लेकिन हल्की सी कांपती उँगलियाँ बता रही थीं कि वो महसूस कर रही थी – हवा ,गर्माहट ,और forbidden thrill सब उसके शरीर में उतर गए थे।रामेश ने भी नज़रें झुकाई ,मगर चेहरे पर वही mischievous मुस्कान थी।
" कल फिर वही हवा ?" पार्वती ने फुसफुसाकर पूछा।" अगर चलेगी तो मैं इंतज़ार करूँगा ," उसने धीरे से कहा।" और अगर कोई देख ले ?" " त ो सिर्फ़ हमारी खामोशी उसका जवाब देगी।"
उनकी आँखों में अब और भी चमक थी।पत्ते सरसराए ,हवा में हल्की सी गर्मी घुल गई।दोनों बस वहाँ खड़े रहे – अधूरी चाह , teasing और suspense की घुलती गर्मी।
दूर से बच्चों की हँसी और बकरियों की घंटियों की आवाज़ आई ,लेकिन नीम के नीचे सब कुछ रुक गया था।सिर्फ़ उनकी साँसें और दिल की धड़कनें अब हवा में echo कर रही थीं।
धूप धीरे – धीरे ढल रही थी ,और नीम की छाँव में हवा में हल्की गर्माहट और घुल चुकी थी।पार्वती और रामेश दोनों एक – दूसरे के इतने पास थे कि साँसें आपस में मिल रही थीं।" आज कोई देख नहीं रहा है ," रामेश ने फुसफुसाया।" हाँ और मुझे अब डर नहीं लगता ," पार्वती ने धीरे से कहा।
उसका पल्लू हल्का सा सरका ,और रामेश ने इशारे से उसे ठीक किया – उनकी उँगलियाँ बस एक पल को छू गईं।दिल की धड़कनें बढ़ गईं।हवा की हल्की सरसराहट ,मिट्टी की गर्माहट ,और नीम के पत्तों की हल्की खनक ने माहौल को और sensual बना दिया।
" तुम हमेशा ऐसा teasing क्यों करते हो ?" पार्वती ने फुसफुसाया।" क्योंकि तुम्हारी आँखों में जो खिंचाव है वो मुझे रोक नहीं सकता ," रामेश ने मुस्कराते हुए कहा।
उनकी नज़रें मिलीं – और उस पल सभी झिझक और डर हवा में घुल गए।पार्वती ने धीरे से कहा , " अगर कोई देख ले " " तो सिर्फ़ ये नीम गवाह होगा ," रामेश ने धीरे से कहा।
दोनों की साँसें अब तेज़ थीं ,दिल की धड़कनें जैसे जोर से बोल रही थीं।पल्लू हल्का सरकते हुए उसके कंधे से गिर गया ,और रामेश ने हाथ बढ़ाया – बस इसे पकड़ने के लिए।पार्वती ने पीछे हटने की कोशिश की ,लेकिन गर्माहट और खिंचाव उसे रोक रहे थे।
" ये forbidden thrill" उसने फुसफुसाया।" और तुम्हारी चाहत ," रामेश ने जोड़ दिया।दोनों की आँखों में वही अधूरी ख्वाहिश थी ,वही teasing,वही blush और heartbeats का खेल।
नीम की छाँव अब गवाह थी – हवा ,पत्ते ,मिट्टी सब इस moment की गर्माहट में घुल चुके थे।उनकी साँसें ,नज़रें ,और हाथ – सब कुछ एक rhythm में थे।कुछ देर के लिए दोनों बस एक – दूसरे की ओर झुके रहे – अधूरी चाह , teasing और craving का climax उनके भीतर बन चुका था।
पार्वती ने धीरे से कहा , " अगर कोई देख ले " " तो ये भी हमारी कहानी का हिस्सा बनेगा ," रामेश ने मुस्कराते हुए कहा।उनकी आँखें अभी भी एक – दूसरे में खोई थीं।
नीम के पत्ते सरसराए ,और हवा की हल्की गर्माहट ने दोनों के बीच का खिंचाव और craving बढ़ा दी।दोनों अब जानते थे – चाहे कोई देख ले ,चाहे अफ़वाहें फैल जाएं ,उनका साँसों का खेल ,नज़रों का teasing और forbidden thrill हमेशा नीम के नीचे जिंदा रहेगा।
Twist / Emotional Climax
शाम ढलते ही गाँव के सारे रंग बदल गए।पार्वती जब घर लौटी ,होंठों पर मुस्कान और आँखों में चमक थी।रामेश भी वहीं खड़ा रहा ,नीम की छाँव में ,सोचते हुए – " ये खिंचाव ,ये craving और ये forbidden thrill अब सिर्फ़ हमारा रहस्य नहीं रहा।यह हवा ,यह मिट्टी ,और यह नीम हमेशा हमारे बीच रहेंगे।"
दोनों जानते थे – यह कहानी पूरी हो चुकी थी ,लेकिन अधूरी चाह और teasing हमेशा जिंदा रहेगी।