स्टेशन पर नया मेहमान

🚆 हनीमून ट्रेन का राज़ – Part 2

ट्रेन सुबह-सुबह एक बड़े स्टेशन पर रुकी। बाहर चहल-पहल थी, ठेले वाले चाय-पकोड़े बेच रहे थे। डिब्बे का दरवाज़ा खुला और सामान के साथ एक आदमी चढ़ आया।

नेहा और आरव चौंक पड़े —
“ये तो… विक्रांत भैया!”

👨‍🦱 विक्रांत (35 साल) – आरव का चचेरा भाई। चौड़े कंधे, रफ-टफ लुक, आँखों में तजुर्बे की चमक।
वो किसी काम से सफर कर रहा था, लेकिन सीट की एडजस्टमेंट के कारण उसी coupe में शिफ्ट हो गया।


😳 चारों के चेहरों का रंग उड़ गया। अभी कुछ ही देर पहले compartments में कराहटों और जिस्म की आवाज़ें गूंज रही थीं।
बिस्तर बिखरे थे, हवा में अब भी पसीने और वासना की गंध थी।

विक्रांत ने हल्की मुस्कान के साथ कहा —
“अरे वाह, पूरा honeymoon डिब्बा ही है यहाँ… मैं तो गड़बड़ कर रहा हूँ शायद।”

कविता ने जल्दी से अपनी साड़ी ठीक की, नेहा ने चुन्नी खींचकर सीना ढक लिया।
राघव ने सामान्य बनने की कोशिश की —
“अरे नहीं-नहीं, तुम आओ, बैठो।”


🔥 मगर मुश्किल ये थी कि विक्रांत की नजरें बार-बार टेढ़ी हो रही थीं।
उसने नेहा की गर्दन पर लाल निशान देखे, कविता के खुले बालों से फिसलती साड़ी को देखा… और फिर आरव की सुस्त, थकी आँखें।
सब कुछ उसकी नज़र में आ गया।

वो हँस पड़ा —
“लगता है रात बहुत भारी रही सबके लिए।”


🚆 ट्रेन फिर से चली। अब माहौल में गिल्ट + डर + नया रोमांच सब एक साथ घुल गए।
कविता पानी पीने उठी तो विक्रांत की नजरें उसकी कमर पर अटक गईं।
नेहा ने सिर झुका लिया मगर उसकी साँसें तेज़ हो गईं।
आरव और राघव दोनों समझ गए — अब खेल और पेचीदा होने वाला है।


🌙 रात ढलने लगी… compartment में फिर से शराब की बोतलें खुलीं।
विक्रांत ने पैग उठाते हुए कहा —
“चलिए, आज मैं भी आप सबका साथ दूँगा… पर शर्त ये है कि असली मज़ा किसी से छुपाना नहीं।”

चारों एक-दूसरे को देखने लगे। हवा में फिर से वही सिहरन दौड़ गई — मगर इस बार पाँचवाँ खिलाड़ी भी शामिल हो चुका था।


👉 Hook for Part 7:
अब कहानी पाँच किरदारों में बँट चुकी है।

  • क्या विक्रांत वाकई उनके रहस्य को पकड़ लेगा और ब्लैकमेल करेगा?
  • या फिर वो भी उसी forbidden रात का हिस्सा बन जाएगा?

🌌 पाँचवाँ खिलाड़ी : विक्रांत का खुला दांव

रात गहरी हो चुकी थी। ट्रेन बाहर अंधेरे में दौड़ रही थी। compartment के अंदर बोतल आधी खाली हो चुकी थी और सबके चेहरे लाल, आँखें नशे से बोझिल।

विक्रांत ने गिलास टेबल पर पटका और ठहाका लगाया –
“चलो अब ढोंग बंद करो! मैंने सब देख लिया है… दीवारें पतली हैं, आवाज़ें साफ़ आती हैं।”

सब चौंक गए। नेहा ने तुरंत चुन्नी सीने पर कस ली, कविता ने नज़रें झुका लीं।
राघव ने सख़्त लहज़े में कहा –
“क्या बकवास कर रहे हो?”

विक्रांत मुस्कुराया, उसकी आँखें नेहा की गोरी जाँघों पर टिकी हुई थीं –
“बकवास? अरे फूफा जी, बकवास तो आप कर रहे हैं। रात में जो महफ़िल सजी थी, उसका मज़ा मैं क्यों न लूँ? मैं भी तो अपना खून हूँ।”


🔥 माहौल में सनसनाहट फैल गई।
आरव उठ खड़ा हुआ –
“बस, बहुत हो गया। ये हमारी निजी बात है!”

विक्रांत ने उसकी कलाई पकड़ ली, दबाकर बोला –
“निजी? अरे छोटे, अगर मैं अभी चिल्ला दूँ तो पुलिस स्टेशन तक तुम्हारा हनीमून खत्म हो जाएगा। समझे?”

आरव गुस्से से काँपने लगा मगर नेहा ने उसका हाथ पकड़कर रोका।
उसकी आँखों में डर और… अजीब-सी उत्सुकता भी थी।


🍷 विक्रांत ने गिलास से आख़िरी घूँट लिया और कविता की तरफ़ बढ़ा।
उसके गले के पास झुककर फुसफुसाया –
“कितनी देर से सोच रहा हूँ… ये कमर, ये खुशबू… फूफा जी भी कैसे रोक पाए होंगे।”

कविता का शरीर सिहर उठा। उसकी साँसें तेज़ हो गईं।
राघव ने ताव में कहा –
“विक्रांत! हद में रहो।”

विक्रांत ने सीधा उसकी आँखों में देखा –
“हद? हद तो आप सबने कब की पार कर दी। अब बारी मेरी है।”


🚆 compartment में एक अजीब खामोशी फैल गई।
नेहा काँपते होंठों से बोली –
“अगर… अगर हमने मना किया तो?”

विक्रांत ने शैतानी मुस्कान के साथ कहा –
“तो मैं सुबह अगले स्टेशन पर उतरकर सबको सच बता दूँगा। अखबार में छप जाएगा – ‘हनीमून ट्रेन में ससुर-बहू का कांड।’”

नेहा की आँखों से आँसू झर पड़े।
कविता ने राघव की तरफ़ देखा।
आरव ने होंठ भींच लिए।

और तभी…
नेहा ने धीरे से चुन्नी उतार दी।


🔥 Hook :
विक्रांत की एंट्री से अब कहानी में ब्लैकमेल + नई वासना + रिश्तों का और बड़ा टूटना आने वाला है।
Part 8 में दिखाएँ? 👉 कैसे विक्रांत सबके सामने नेहा और कविता दोनों को अपने कब्ज़े में लेने की कोशिश करता है — और आरव-राघव दोनों लाचार होकर देखते हैं।

🌌 विक्रांत का पहला शिकार

कमरे में सन्नाटा पसरा था। सिर्फ़ ट्रेन की छुकछुक और भीतर की तेज़ साँसें सुनाई दे रही थीं।
नेहा काँपते हुए खड़ी थी, उसकी चुनरी ज़मीन पर गिरी हुई। आँखों से आँसू बह रहे थे मगर होंठ सख़्त दबे हुए।

विक्रांत धीरे-धीरे उसके पास आया।
उसकी उँगलियाँ नेहा की ठुड्डी पकड़कर चेहरा ऊपर उठाती हैं –
“इतनी नाज़ुक… इतनी कोमल… सोच भी नहीं सकता था फूफा जी ने ऐसी बहू घर लाई है।”

नेहा ने मुँह फेरना चाहा मगर विक्रांत ने कसकर पकड़ लिया।
उसकी गरम साँसें नेहा के गाल पर लगीं और उसने फुसफुसाया –
“डर मत… अब ये खेल मेरी शर्तों पर होगा।”


🔥 नेहा की देह काँप उठी।
आरव झल्लाकर आगे बढ़ा –
“दूर हट विक्रांत! ये मेरी बीवी है।”

विक्रांत ने ज़ोर से धक्का दिया, आरव सीट पर गिर पड़ा।
उसने तंज कसा –
“बीवी? अरे अभी-अभी फूफा जी की गोद में बैठी थी। अब अचानक वफ़ादार पति बन गया?”

राघव का चेहरा तमतमा गया –
“बस! और बर्दाश्त नहीं करूँगा।”

विक्रांत उसकी ओर मुड़ा, आँखों में चुनौती –
“आपको चुप रहना होगा। वरना कल सुबह पुलिस और अख़बार दोनों को पता चल जाएगा। सोचना… कितना मज़ा आएगा उन्हें ये खबर पढ़कर।”


🍷 फिर वो कविता की ओर बढ़ा।
उसकी आँखों में शरारत और हवस का नशा था।
“कविता भाभी… आपकी तो शादी को साल भी नहीं हुआ और आप भी… वही मस्ती में शामिल। सच कहूँ, मुझे हमेशा से आपकी कमर का झूलता नशा दीवाना करता रहा है।”

कविता का गला सूख गया। उसने राघव की तरफ़ देखा, मगर राघव की आँखों में सिर्फ़ बेबसी थी।
विक्रांत ने बिना इंतज़ार किए हाथ बढ़ाया और कविता की साड़ी का पल्लू सरकाने लगा।


🚆 ट्रेन झटकों से हिली और उसी लय में compartment के अंदर कपड़ों की सरसराहट गूँज उठी।
नेहा काँप रही थी, कविता की साँसें उखड़ी हुई थीं, और राघव-आरव दोनों मजबूर होकर देख रहे थे।

विक्रांत ने हँसते हुए कहा –
“आज मैं तय करूँगा किसको कब छूना है। और तुम सब… सिर्फ़ देखोगे।”


🌑 पहली रात का शिकार

विक्रांत ने हाथ में गिलास उठाया और नेहा की तरफ़ बढ़ा।
उसकी आँखें चमक रही थीं –
“इतनी मासूमियत… इतनी कोमलता… यही तो मज़ा है।”

नेहा पीछे हटने लगी, मगर ट्रेन का डिब्बा छोटा था।
उसकी पीठ दीवार से लग गई।
आरव चीखा –
“हट जा उसके पास से!”

लेकिन विक्रांत ने आरव की तरफ़ उँगली दिखाकर कहा –
“एक शब्द और निकाला तो तेरी बीवी को सबके सामने नंगा कर दूँगा।”

नेहा की आँखें डर से चौड़ी हो गईं।
उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं।
विक्रांत ने धीरे-धीरे उसके होंठों के करीब चेहरा लाया और गरजकर बोला –
“याद रखो, आज रात तुम्हारा हर आह भरना मेरे लिए जीत होगी।”


🔥 तभी विक्रांत ने अचानक दिशा बदली।
उसने नेहा को छोड़कर कविता का पल्लू कसकर खींचा।
कविता चौंक गई, उसके सीने की गोलाई झटके से उभर आई।
विक्रांत हँसते हुए बोला –
“लगता है पहले सास से शुरुआत करनी चाहिए… बहू अभी बहुत काँप रही है।”

राघव की नसें तन गईं।
वो आगे बढ़ा, मगर विक्रांत ने जेब से चाकू चमका दिया।
“बस! वरना तेरी बीवी और बहू… दोनों की इज़्ज़त अगले स्टेशन तक अख़बार में होगी।”

कविता का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।
उसने काँपती आवाज़ में कहा –
“मत करो… प्लीज़…”

विक्रांत ने उसकी ठुड्डी पकड़कर ऊपर उठाया –
“अब देर हो चुकी, कविता भाभी।”


🚆 ट्रेन ने ज़ोर का झटका दिया।
पलभर में compartment में सन्नाटा छा गया।
नेहा दीवार से चिपकी काँप रही थी, आरव और राघव बंधे हुए गुस्से में उबल रहे थे, और कविता की आँखों में आँसू चमक रहे थे।

विक्रांत ने गहरी साँस ली और बोला –
“आज की रात… मैं तुम्हारी कहानी लिखूँगा। और तुम सब… बस देखोगे।”


🔥 Hook:
अब विक्रांत कविता को अपना पहला शिकार बनाता है।
उसके और कविता के बीच के पहले explicit पल compartment को दहला देंगे,
जबकि नेहा, आरव और राघव मजबूरी में हर कराह सुनेंगे।

🌑 सास का जिस्म, विक्रांत का खेल

कविता की साँसें फूल रही थीं, आँसू गालों पर बह रहे थे।
विक्रांत ने उसका पल्लू जोर से खींचा, और उसके सीने की गोलाई झटके से उभर आई।
कविता ने दोनों हाथों से ढकने की कोशिश की, मगर विक्रांत ने उसकी कलाइयाँ पकड़कर ऊपर कर दीं।

“इतनी सुडौल सास…” उसने गरम साँसें उसके कान में छोड़ी, “आज बहू नहीं… तेरा शरीर मुझे चाहिए।”

🚆 ट्रेन का झटका आया और कविता उसके सीने से सट गई।
उसके होठों से दबी हुई कराह निकल गई –
“आह्ह… छोड़ो…”

आरव पागल हो रहा था, रस्सियों से छूटने की कोशिश करता हुआ चीखा –
“हरामी! उसे छोड़ दे वरना मैं…”
विक्रांत ने घूरते हुए कहा –
“चुप! तेरी बीवी अगली है… पहले तेरी माँ जैसी औरत का स्वाद लूँगा।”

🔥 कविता का आँचल ज़मीन पर गिर चुका था।
वो अब सिर्फ़ ब्लाउज़ और पेटीकोट में काँप रही थी।
विक्रांत ने उसकी कमर पकड़कर उसे अपनी गोद में खींच लिया।
उसका ब्लाउज़ फाड़ते ही चूड़ियों की झंकार के साथ उसके उभरे हुए वक्ष बाहर आ गए।

नेहा ने अपनी आँखें बंद कर लीं, मगर उसके कानों में कविता की कराहें गूँज रही थीं।
“नहीं… आह्ह… प्लीज़…”

विक्रांत ने उसके वक्षों को मसलते हुए कहा –
“तू ना कहेगी, पर तेरे जिस्म की गर्मी सब बता रही है।”

🚆 compartment भारी साँसों, कपड़ों की सरसराहट और कविता की दबी हुई चीख़ों से भर चुका था।
राघव की आँखों में ग़ुस्से के साथ-साथ बेबसी झलक रही थी।
उसकी अपनी पत्नी किसी और मर्द के नीचे दब रही थी… और वो सिर्फ़ देख सकता था।

विक्रांत ने कविता को नीचे बिछाकर उसकी टाँगें खोल दीं।
“आज रात… इस ट्रेन की पटरियों पर सिर्फ़ तेरी चीख़ें गूँजेंगी।”

🔥 उसका शरीर पसीने से भीग रहा था।
कविता की आँखें भीग गईं, होंठ काँप रहे थे, मगर हर झटके के साथ compartment में उसकी कराह गूँज रही थी।

नेहा अपने होंठ दाँतों से दबा रही थी, उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे।
आरव दाँत पीसकर रस्सियों से जूझ रहा था।
राघव का गला सूख चुका था।

और विक्रांत हँसते हुए कह रहा था –
“देख रहे हो सब? यही है असली मज़ा… जब मर्द, औरत, रिश्ते सब टूट जाएँ… और बस जिस्म बोलें।”


🔥 Hook :
कविता अब टूट चुकी है – उसकी चीख़ें और आहें compartment में गूँज चुकी हैं।
अब विक्रांत की नज़र सीधे नेहा पर है… बहू का जिस्म उसकी अगली भूख बन चुका है।

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